रुतबा तो खामोशियों का होता है मेरे दोस्त,
अलफ़ाज़ तो बदल जाते है लोगों को देखकर।
कलम चलती है तो दिल की आवाज लिखता हूँ,
गम और जुदाई के अंदाज़-ए-बयां लिखता हूँ,
रुकते नहीं हैं मेरी आँखों से आंसू,
मैं जब भी उसकी याद में अल्फाज़ लिखता हूँ।
मत लगाओ बोली अपने अल्फ़ाज़ों की,
हमने लिखना शुरू किया तो तुम नीलाम हो जाओगे।
सिमट गई मेरी गजल भी चंद अलफ़ाजो में,
जब उसने कहा मोहब्बत तो है पर तुमसे नहीं।
खता हो जाती है जज़्बात के साथ,
प्यार उनका याद आता है, हर बात के साथ,
खता कुछ नहीं, बस प्यार किया है,
उनका प्यार याद आता है, हर अलफ़ाज़ के साथ।
अब ये न पूछना के मैं अलफ़ाज़ कहाँ से लाता हूँ,
कुछ चुराता हूँ दर्द दूसरों के कुछ अपनी सुनाता हूँ।
सभी तारीफ करते हैं मेरी शायरी की लेकिन,
कभी कोई सुनता नहीं मेरे अल्फाज़ो की सिसकियाँ।
चंद अल्फ़ाज़ के मोती हैं मेरे दामन में,
है मगर तेरी मोहब्बत का तक़ाज़ा कुछ और।
हर अल्फाज दिल का दर्द है मेरा पढ़ लिया करो,
कौन जाने कौन सी शायरी आखरी हो जाए,
ये चेहरा ये रौनक ढल ही जाएंगे एक उम्र के बाद,
हम मिलते रहेंगे ताउम्र यूँ ही अल्फ़ाज़ों के साथ।
कुछ अल्फाज के सिलसिले से बनती है शायरी,
और कुछ चेहरे अपने आप में पूरी गजल होते हैं।
महसूस करोगे तो कोरे कागज पर भी नज़र आएंगे,
हम अल्फ़ाज़ हैं तेरे हर लफ्ज़ में ढल जाएंगे।
कैसे बयां करूं अल्फाज नहीं है,
दर्द का मेरे तुझे एहसास नहीं है,
पूछते हो मुझसे क्या दर्द है,
मुझे दर्द ये ही कि तू मेरे पास नहीं है।
खामोशी को चुना है अब बाकी है सफर के लिए,
अब अल्फाजोंको जाया करना हमें अच्छा नहीं लगता।
कई हर्फ़ों से मिल कर बन रहा हूँ,
बजाए लफ़्ज़ के अल्फ़ाज़ हूँ मैं।
सारी रात तेरे यादों में खत लिखते रहे,
पर दर्द ही इतना था की,
अश्क बहते रहे और अल्फाज बहते रहे।
अधूरे रहते हैं मेरे अल्फाज तेरे जिक्र के बिना,
मेरी शायरी की रूह तो बस तु है।
ये अलग बात कि अल्फ़ाज़ हैं मेरे लेकिन,
सच तो बस ये है कि तेरी ही सदा है मुझ में।
मीठे बोल बोलिए क्योंकि अल्फाजों में जान होती है,
इन्हीं से आरती अरदास और अजान होती है,
ये दिल के समंदर के वो मोती हैं,
जिनसे इंसान की पहचान होती है।
मेरे अल्फ़ाज ही है मेरे दर्द का मरहम,
गर मैं शायर ना होता तो पागल होता।
उठा लाया किताबों से वो इक अल्फ़ाज़ का जंगल,
सुना है अब मिरी ख़ामोशियों का तर्जुमा होगा।
उनके अल्फाज हमारे कानों तक पहुंच तो जाएंगे,
हम तो सिर्फ दोस्त हैं उनके,
पर वो अपना दर्द हमें इस कदर सुनाते हैं,
जैसे कोई खास है उनके।
कागज पर गम को उतारने के अंदाज ना होते,
मर ही गये होते अगर शायरी के अल्फाज ना होते।
अल्फ़ाज़ न आवाज़ न हमराज़ न दम-साज़,
ये कैसे दोराहे पे मैं ख़ामोश खड़ी हूँ।
प्यार अल्फाजों का खेल है,
प्यार करने वाला खामोशी को भी समझ जाता है,
और प्यार ना करने वाले को,
छोड़ देना ही बेहतर होता है।
जब सन्नाटा फ़ैल जाये तो समझ लेना,
कि अल्फ़ाज गहरे उतरे हैं दिल में।
बंद रहते हैं जो अल्फ़ाज़ किताबों में सदा,
गर्दिश-ए-वक़्त मिटा देती है पहचान उन की।
तेरे अल्फाज हमारे दिल को,
कुछ इस तरह भा जाते हैं,
तू झूठा ही हम पर प्यार दिखाएं,
हम तो उससे भी खुश हो जाते हैं।
हम अल्फाजो से खेलते रह गए,
और वो दिल से खेल के चली गईं।
ख़याल क्या है जो अल्फ़ाज़ तक न पहुँचे 'साज़',
जब आँख से ही न टपका तो फिर लहू क्या है।
तेरी बातो मे निकलते अल्फाज,
युही नही समझ लेते है हम,
उस को क्या पता प्यार करते है हम,
जिनसे उनकी खामोशी भी समझ लेते है हम।