टूटा-फूटा घर मेरा,
बस दो वक़्त की रोटी है,
हम बुरी हालातों से लड़ने वाले किसान,
हमारी जिंदगी बहुत छोटी हैं।
दीवार क्या गिरी किसान के कच्चे मकान की,
नेताओ ने उसके आँगन में रस्ता बन दिया।
कहा रख दू अपने हिस्से की शराफ़त,
जहाँ देखूं वहां बेईमान ही खडे है,
क्या खूब बढ़ रहा है वतन देखिये,
खेतों में बिल्डर सड़क पे किसान खड़े है।
बढ़ रही हैं कीमते अनाज की,
पर हो न सकी विदा बेटी किसान की।
अपनी फसलों को आधे भाव में बेचकर भी,
वो किसान हमेशा खुश रहता हैं।
क्योंकि उसे अपनी कमाई से ज्यादा,
दूसरों का पेट भरने में आनंद आता हैं।
खेतों को जब पानी की जरूरत होती है,
तो आसमान बरसता है या तो आँखें।
मत मारो गोलियो से मुझे,
मैं पहले से एक दुखी इंसान हूँ,
मेरी मौत कि वजह यही हैं कि,
मैं पेशे से एक किसान हूँ।
खुदका तो पता नहीं पर,
कोई पेट न भूका रह जाये,
इतना में करूँ परिश्रम की,
चारों धाम खेत से हो जायें।
जमीन जल चुकी है आसमान बाकी है,
सूखे कुएँ तुम्हारा इम्तहान बाकी है,
वो जो खेतों की मेढ़ों पर उदास बैठे हैं,
उनकी आखों में अब तक ईमान बाकी है,
छोटे छोटे हाथों में छाले हो जाते हैं,
किसान के बच्चे इसलिए दिलवाले हो जाते हैं,
यही बॉर्डर पर सेना में कुर्बान हो जाते हैं,
किसान के बच्चे वक़्त से पहले जवान हो जाते हैं।