शहर मे ओलावृष्टि से,
शहरी बहुत खुश होते है बर्फ़बारी समझकर,
कभी मिलजाए फुर्सत तो महसूस करियेगा दर्द,
खुद को गांव का किसान समझकर।
देर शाम खेत से किसान घर नहीं आता है,
तो बच्चों का मासूम दिल सहम जाता है।
जमीन जल चुकी है आसमान बाकी है,
सूखे कुएँ तुम्हारा इम्तहान बाकी है,
वो जो खेतों की मेढ़ों पर उदास बैठे हैं,
उनकी आखों में अब तक ईमान बाकी है,
एक ईमानदार किसान को डरे सहमे हुए देखा है,
मेहनत करने के बावजूद भूख से लड़ते हुए देखा है।
शुक्र हैं कि बच्चे अब शर्म से नही मरेंगे,
चुल्लू भर पानी खुदा दे, दुआँ करेंगे।
ऐ ख़ुदा बस एक ख़्वाब सच्चा दे दे,
अबकी बरस मानसून अच्छा दे दे,
कितने अजब रंग समेटे हैं, ये बेमौसम बारिश खुद में,
अमीर पकौड़े खाने की सोच रहा हैं तो किसान जहर।
कहाँ ले जाओगे किसान के हक का दाना,
इस दुनिया को एक दिन तुमको भी है छोड़ जाना।
सबका पेट भरता वो आज उस पे भूके रहने की नौबत आयी,
नहीं सम्भले अभी तो कल हमारी बारी आयी।
जो अपने कांधे पर देखो खुद हल लेकर चलता है,
आज उसी की कठिनाइयों का हल क्यों नही निकलता है,
है जिससे उम्मीद उन्हें बस चिंता है मतदान की,
टूटी माला जैसे बिखरी किस्मत आज किसान की।