कहा रख दू अपने हिस्से की शराफ़त,
जहाँ देखूं वहां बेईमान ही खडे है,
क्या खूब बढ़ रहा है वतन देखिये,
खेतों में बिल्डर सड़क पे किसान खड़े है।
छोटे छोटे हाथों में छाले हो जाते हैं,
किसान के बच्चे इसलिए दिलवाले हो जाते हैं,
यही बॉर्डर पर सेना में कुर्बान हो जाते हैं,
किसान के बच्चे वक़्त से पहले जवान हो जाते हैं।
कोई परेशान हैं सास-बहू के रिश्तो में,
किसान परेशान हैं कर्ज की किश्तों में।
खाया, खूब खाया, दावते उड़ाई,
जो बचा था, कचरा पात्र में था,
और जो भूखा था वो किसान था,
वो भूखा भी इसीलिए था क्योंकि वो किसान था।
मुफ़्त की कोई चीज बाजार में नहीं मिलती,
किसान के मरने की सुर्खियां अखबार में नहीं मिलती।
उन घरो में जहाँ मिट्टी के घड़े रहते हैं,
कद में छोटे हो, मगर लोग बड़े रहते हैं।
टूटा-फूटा घर मेरा,
बस दो वक़्त की रोटी है,
हम बुरी हालातों से लड़ने वाले किसान,
हमारी जिंदगी बहुत छोटी हैं।
क्यों ना सजा दी पेड़ काटने वाले शैतान को,
खुदा तूने सजा दे दी सीधे-सादे किसान को।
शहर मे ओलावृष्टि से,
शहरी बहुत खुश होते है बर्फ़बारी समझकर,
कभी मिलजाए फुर्सत तो महसूस करियेगा दर्द,
खुद को गांव का किसान समझकर।
यू आसमा पे पहुच रही कीमते खाद्यान की,
फिर भी बिना ऋण विदा हो सकी लाडली किसान की।