खेतों का पानी अब आखों में आ गया हैं,
मेरे गाँव का किसान अब शहर में आ गया हैं।
मैं किसान हूँ मुझे भरोसा हैं अपने जूनून पर,
निगाहे लगी हुई है आकाश के मानसून पर।
शुक्र हैं कि बच्चे अब शर्म से नही मरेंगे,
चुल्लू भर पानी खुदा दे, दुआँ करेंगे।
घटाएँ उठती हैं, बरसात होने लगती है,
जब आँख भर के फ़लक को किसान देखता है।
हू एक किसान ऐतबार अपनी लगन पे,
लगी है निगाहें आसमा के मानसून पे।
जो अपने कांधे पर देखो खुद हल लेकर चलता है,
आज उसी की कठिनाइयों का हल क्यों नही निकलता है,
है जिससे उम्मीद उन्हें बस चिंता है मतदान की,
टूटी माला जैसे बिखरी किस्मत आज किसान की।
कोई परेशान हैं सास-बहू के रिश्तो में,
किसान परेशान हैं कर्ज की किश्तों में।
लोग कहते हैं बेटी को मार डालोगे,
तो बहू कहाँ से पाओगे?
जरा सोचो किसान को मार डालोगे,
तो रोटी कहाँ से लाओगे?
बढ़ रही हैं कीमते अनाज की,
पर हो न सकी विदा बेटी किसान की।
कहा रख दू अपने हिस्से की शराफ़त,
जहाँ देखूं वहां बेईमान ही खडे है,
क्या खूब बढ़ रहा है वतन देखिये,
खेतों में बिल्डर सड़क पे किसान खड़े है।