ज़िन्दगी के नगमे कुछ यूँ गाता,
मेहनत मजदूरी करके खाता,
सद्बुद्धि सबको दो दाता,
हम है, अगर हैं अन्नदाता
कहा रख दू अपने हिस्से की शराफ़त,
जहाँ देखूं वहां बेईमान ही खडे है,
क्या खूब बढ़ रहा है वतन देखिये,
खेतों में बिल्डर सड़क पे किसान खड़े है।
मत मारो गोलियो से मुझे,
मैं पहले से एक दुखी इंसान हूँ,
मेरी मौत कि वजह यही हैं कि,
मैं पेशे से एक किसान हूँ।
अपनी फसलों को आधे भाव में बेचकर भी,
वो किसान हमेशा खुश रहता हैं।
क्योंकि उसे अपनी कमाई से ज्यादा,
दूसरों का पेट भरने में आनंद आता हैं।
खुदका तो पता नहीं पर,
कोई पेट न भूका रह जाये,
इतना में करूँ परिश्रम की,
चारों धाम खेत से हो जायें।
देवताओं से भी हल नहीं हुई,
जिन्दगी कही सरल नही हुई,
कि अबके साल फिर यही हुआ
अबके साल फिर फसल नही हुई।