मुझे मोहब्बत है अपने हाथों की सब ऊँगलियों से,
ना जाने पापा ने कौनसी ऊँगली को पकड़कर,
मुझे चलना सिखाया था।
नींद अपनी भुला के सुलाया हमकों,
आंसू अपने गिरा के हँसाया हमको,
लिए गोद में झुलाया हमको,
जीवन की हर ख़ुशी से पापा आपने मिलाया हमकों।
सिमटती दिखे उन्हें मेरी ख्वाहिशे अगर,
दाल देते है पापा परदे अपनी निजी ज़रूरतों पर।
मन की बात जो पल में जान ले,
आंखों से जो हर बात पढ़ ले,
दर्द हो या खुशी, हर बात को पल में जान ले।
पापा ही तो है, जो आपको बेपनाह प्यार दे।
धरती सा धीरज दिया और आसमान सी उंचाई है,
जिन्दगी को तरस के खुदा ने ये तस्वीर बनाई है,
हर दुख वो बच्चों का खुद पे वो सह लेतें है,
उस खुदा की जीवित प्रतिमा को हम पिता कहते है।
आँखों के सामने हर पल आपको पाया है,
अपने दिल में सिर्फ आपको ही बसाया है,
आपके बिना हम जियें भी तो कैसे,
भला अपनी अपनी जान के बिना भी कोई जी पाया है।
क़दर पिता की कोई जान लेगा,
अपनी जन्नत को दुनिया में ही पहचान लेगा।
सबसे खुशकिस्मत है वह इंसान,
जिसके पास है पिता के प्यार की बेशुमार दौलत।
खुशिया जहाँ की सारी मिल जाती है,
जब पापा की गोद में झपकी मिल जाती है।
पिता हारकर बाज़ी हमेशा मुस्कुराया,
शतरंज की उस जीत को मैं अब समझ पाया।