तोतली जुबान से निकला पहला शब्द,
उसे सारे जहाँ की खुशियाँ दे जाता है,
बच्चों में ही उसे नजर आती है जिंदगी अपनी,
उनके लिए तो ‘पिता’ अपनी जिंदगी दे जाता है।
बेमतलब सी दुनिया में वह ही हमारी शान हैं,
किसी शख़्स के वजूद की पिता ही पहली पहचान हैं।
वो जमीन मेरी वो ही आसमान है,
वो खुदा मेरा वो ही भगवान है,
क्यों मैं जाऊं उसे कहीं छोड़ के,
पापा के कदमों में सारा जहान है।
जलती धूप में वो आरामदायक छाँव है,
मेलों में कंधे पर लेकर चलने वाला पाँव है,
मिलती है जिंदगी में हर ख़ुशी उसके होने से,
कभी भी उल्टा नहीं पड़ता पिता वो दांव है।
अगर मैं रास्ता भटक जाऊं,
मुझे फिर राह दिखाना पापा,
आपकी ज़रुरत हर कदम पर होगी,
नहीं और कोई आपसे बेहतर चाहने वाला।
मेरे कदम कैसे डगमगाएंगे,
मुझे मेरे पापा ने चलना सिखाया हैं।
सख्त सी आवाज में कहीं प्यार छिपा सा रहता है,
उसकी रगों में हिम्मत का एक दरिया सा बहता है,
कितनी भी परेशानियां और मुसीबतें पड़ती हों उस पर,
हंस कर झेल जाता है ‘पिता’ किसी से कुछ न कहता है।
छोटे छोटे संकट के लिये माँ याद आती है,
मगर बड़े संकट के वक़्त पिता याद आते हैं।
प्यारे पापा के प्यार भरे सीने से जो लग जाते हैं,
सच कहती हूँ विश्वास करो, जीवन में सदा सुख पाते हैं।
कमर झुक जाती है बुढ़ापे में उसकी,
सारी जवानी जिम्मेवारियों का बोझ ढोकर,
खुशियों की ईमारत खड़ी कर देता है पिता,
अपने लिए बुने हुए सपनों को खो कर।