मंज़िल दूर और सफ़र बहुत है,
छोटी सी जिन्दगी की फिकर बहुत है,
मार डालती ये दुनिया कब की हमे,
लेकिन “पापा ” के प्यार में असर बहुत है।
बेटे होने का फ़र्ज कभी तुम भी निभाना,
जब पिता ना कहे तो उनकी मजबूरी समझ जाना।
कभी हँसी और ख़ुशी का मेला है पिता,
कभी कितना अकेला और तन्हा है पिता,
माँ तो कह देती है अपने दिल की बात,
सब कुछ समेट के आसमान सा फैला है पिता।
आज भी मेरी फरमाइशें कम नही होती,
तंगी के आलम में भी, पापा की आँखें कभी नम नहीं होती।
वहीं श्रवण कुमार बन पायेंगें,
जो पिता के एहसानों का कर्ज चुकायेंगे।
पिता उस दीये की तरह हैं,
जो खुद जलकर, औलाद का जीवन रौशन करते हैं।
वो जमीन मेरी वो ही आसमान है,
वो खुदा मेरा वो ही भगवान है,
क्यों मैं जाऊं उसे कहीं छोड़ के,
पापा के कदमों में सारा जहान है।
कोई चाहे कुछ भी कहे,
लेकिन ये बात पक्की होती है,
की पिता की डाट में भी,
बेटे की तरक्की होती है।
सख्त सी आवाज में कहीं प्यार छिपा सा रहता है,
उसकी रगों में हिम्मत का एक दरिया सा बहता है,
कितनी भी परेशानियां और मुसीबतें पड़ती हों उस पर,
हंस कर झेल जाता है ‘पिता’ किसी से कुछ न कहता है।
आँखों के सामने हर पल आपको पाया है,
अपने दिल में सिर्फ आपको ही बसाया है,
आपके बिना हम जियें भी तो कैसे,
भला अपनी अपनी जान के बिना भी कोई जी पाया है।