तकलीफ उस वक्त सबसे ज्यादा होता है
जब दिल में कहने को बहुत कुछ हो,
जुबान खामोश हो और
समझने वाला कोई ना हो।
किसी का ये सोचकर साथ मत छोड़ना
की उसके पास कुछ नही तुम्हे देने के लिए।
बस ये सोचकर साथ निभाना की
उसके पास कुछ नही तुम्हारे सिवा खोने के लिए।
उस मोड़ पर आकर
खड़ी हो गई है ये जिंदगी,
जहाँ चाहत तो होती है मरने कि
लेकिन मजबूरी है जीने की।
अगर खुदा ने पूछा तो कह देंगे
हुई थी मोहब्बत हमें किसी से बेइंतेहा,
मगर जिससे हुई थी
हम उसके काबिल न थे।
बड़ा नादान सा चेहरा था उसका
उसकी चालाकी को मैं समझ ना सका,
वो कहती थी जान हो तुम, फिर चालाकी से
किसी और को अपना जान बना लिया।
जिसने महसूस किया हो सच्चे रिश्ते को
वहीं रिश्तों के टूटने पर रोता है,
वरना मतलब का रिश्ता रखने वालों की
आंखों में न तो शर्म होता है, और न पानी।
वो जा रही थी
और मैं खामोश खड़ा देखता रहा,
क्योंकि सुना था कि पीछे से आवाज़ नहीं देते।
ना जाने उसकी बेरूखी हमें क्यों पसंद आई,
ना चाहते हुए भी उससे मोहब्बत हो गई,
उससे शिकवा भी क्या करें हम,
उसने नहीं पसंद तो हमने किया था उसे।
जिससे उम्मीद हो अगर वही दिल दुखा दे,
तो भरोसा उस इंसान से ही नहीं
पूरी दुनियां से उठ जाता।
मेरी आंखों से ये डर अभी तक नहीं जाता,
तू उठ कर चली गई मगर यकीन नहीं आता,
जाने वाले लोगों में तुम भी शुमार थे,
मगर तुमसे ज्यादा इतना कोई याद नहीं आता।
टूट कर बिखर जाते है वो लोग
मिटटी की दीवारों की तरह,
जो खुद से भी ज्यादा
किसी और से प्यार करते है।
शिकायत है उन्हें कि
हमें मोहब्बत करना नहीं आता,
शिकवा तो इस दिल को भी है
पर इसे शिकायत करना नहीं आता।
मिल गया उसी को
हमने मुक़द्दर समझ लिया,
ये सौदा ही नहीं कि मिली हुई
चीज को भी खो सकते है हम।
तु रूठी-रूठी सी रहती है ए ज़िंदगी,
कोई तरकीब बता तुझे मनाने की,
मैं साँसे गिरवी रख दूँगा अपनी,
बस तूं कीमत बता अपनी मुस्कुराने की।
ये एक तरफा प्यार भी बहुत अज़ीब होता है,
हमेशा डर लगा रहता है की,
कोई उन्हें हम से चुरा न ले।
लोग कहते है दु:ख बुरा होता है
जब भी आता है रुलाकर जाता है,
लेकिन हम कहते दु:ख अच्छा होता है
जब भी आता है कुछ सीखा कर जाता है।
हिम्मत नही अब मुझमें,
मैं खुद को साबित करूँ,
अब तो जो जैसा समझे
उसके लिए वैसा ही हूं मैं।
जिसकी गलतियों को भुला कर
मैने हर बार रिश्ता निभाया,
उसी ने मुझे हर बार
फालतू होने का एहसास दिलाया।
आज उस की आँखों मे आँसू आ गये,
वो बच्चो को सिखा रही थी की
मोहब्बत ऐसे लिखते है।
न जाने किस कॉलेज से ली थी
मोहब्बत की डिग्री उसने,
जितने भी मुझसे वादे किये थे
सब फ़र्ज़ी निकले।
हार माननी ही पड़ी एक नासमझ दिल को,
आखिर कब तक लड़ता
एक मतलबी दिल और चालाक दिमाग से।