किसी का ये सोचकर साथ मत छोड़ना
की उसके पास कुछ नही तुम्हे देने के लिए।
बस ये सोचकर साथ निभाना की
उसके पास कुछ नही तुम्हारे सिवा खोने के लिए।
पहले मोहब्बत किया फिर
नजरअंदाज कर के धोखा दिया,
कुछ इस तरह एक शक्स ने
मुझे बड़ी तरकीब से तबाह किया।
मिली थी जिन्दगी
किसी के काम आने के लिए,
पर वक्त बित रहा है,
कागज के टुकड़े कमाने के लिए।
किसी का ये सोचकर साथ मत छोड़ना
की उसके पास कुछ नही तुम्हे देने के लिए।
बस ये सोचकर साथ निभाना की
उसके पास कुछ नही तुम्हारे सिवा खोने के लिए।
मिल गया उसी को
हमने मुक़द्दर समझ लिया,
ये सौदा ही नहीं कि मिली हुई
चीज को भी खो सकते है हम।
जिससे उम्मीद हो अगर वही दिल दुखा दे,
तो भरोसा उस इंसान से ही नहीं
पूरी दुनियां से उठ जाता।
जिंदगी मे जो हम चाहते है
वो आसानी से नही मिलता,
लेकिन हम भी वही चाहते है
जो हमें आसानी से नही मिलता।
उम्मीद से बढ़कर निकली तुम तो,
मैंने तो सोचा था दिल ही तोड़ोगी
तुमने तो मुझे ही तोड़ दिया।
जिसकी गलतियों को भुला कर
मैने हर बार रिश्ता निभाया,
उसी ने मुझे हर बार
फालतू होने का एहसास दिलाया।
आँखें थक गई है आसमान को देखते देखते,
पर वो तारा नहीं टूटता,
जिसे देखकर तुम्हें मांग लूँ।
बड़ा नादान सा चेहरा था उसका
उसकी चालाकी को मैं समझ ना सका,
वो कहती थी जान हो तुम, फिर चालाकी से
किसी और को अपना जान बना लिया।
तु रूठी-रूठी सी रहती है ए ज़िंदगी,
कोई तरकीब बता तुझे मनाने की,
मैं साँसे गिरवी रख दूँगा अपनी,
बस तूं कीमत बता अपनी मुस्कुराने की।
वो जा रही थी
और मैं खामोश खड़ा देखता रहा,
क्योंकि सुना था कि पीछे से आवाज़ नहीं देते।
मेरी आंखों से ये डर अभी तक नहीं जाता,
तू उठ कर चली गई मगर यकीन नहीं आता,
जाने वाले लोगों में तुम भी शुमार थे,
मगर तुमसे ज्यादा इतना कोई याद नहीं आता।
मेरे दिल का दर्द किसने देखा है,
मुझे बस खुदा ने तड़पते देखा है,
हम तन्हाई में बैठे रोते है,
लोगों ने हमें महफिल में हंसते देखा है।
किसी इंसान को दर्द देना इतना आसान होता है
जितना समुद्र में पत्थर फेकना,
लेकिन यह कोई नहीं जनता की वह कितनी
गहराई तक गया होगा।
हार माननी ही पड़ी एक नासमझ दिल को,
आखिर कब तक लड़ता
एक मतलबी दिल और चालाक दिमाग से।
सोचा था बताएंगे हर एक दर्द तुमको,
लेकिन तुमने तो इतना भी न पूँछा
की खामोश क्यों हो।
कोई दुआ कर दे मेरे सुकून की
दिल आज दर्द से फटा जा रहा है,
वजह तो पता नही
बस हर बात पे रोना आ रहा है।
ना जाने उसकी बेरूखी हमें क्यों पसंद आई,
ना चाहते हुए भी उससे मोहब्बत हो गई,
उससे शिकवा भी क्या करें हम,
उसने नहीं पसंद तो हमने किया था उसे।
टूट कर बिखर जाते है वो लोग
मिटटी की दीवारों की तरह,
जो खुद से भी ज्यादा
किसी और से प्यार करते है।