सब पर भरोसा है, पर कुछ नहीं हासिल है,
जिस तरफ पीठ करो, वहीं खड़ा कातिल है।
क्यो भरोसा करू किसी और पर,
जब खुद की आंखे खुद को धोखा दे।
सिखा दिया दुनिया ने मुझे अपनो पर भी शक करना,
मेरी फितरत में तो गैरों पर भी भरोसा करना था।
जब जब भरोसा किया है मेने,
तब तब भरोसा टूटा है मेरा,
अब तो किसी पर भरोसा करने का,
मन ही नही करता है मेरा।
हर इक पल सामने मेरे तुम्हारा ही ये चेहरा हो,
तुम्हारी ही महक लाता हवाओं का ये पहरा हो,
तुम्हारे प्यार में पागल हुआ दिल कह रहा है अब,
तुम्हें मुझ पर भरोसा और गहरा और गहरा हो।
लोगों के पास बहुत कुछ है,
मगर मुश्किल यही है की,
भरोसे पे शक है और,
अपने शक पे भरोसा है।
भरोसे के बाज़ार में जिंदगी बेची थी मैंने,
तब जा के कहीं पाया हैं ये लहेजा मैंने।
आज शाम हुई कल फिर सूरज निकलेगा,
भरोसा रख अपने आप पर हर पल तू निखरेगा।
रोक लो नैनों को लकीरें भी बह जाएंगीं वरना,
आज रोक लो हमें, कल का भरोसा मत करना।
झड़ गए पत्ते उम्मीदों के सारे,
मग़र जड़ भरोसे की मजबूत बहुत है।