बरसात की रात में मत करो शैतानी,
मौका मिला है तो क्या करोगे अपनी मनमानी,
बातें करने को बुलाया था तुमने तो आज मुझे,
अब मत करो तुम अपने इरादों से बेईमानी।
अब ना तुम साथ हो, बस एक यादों की बरसात हो,
जो बस भिगाये ये मनन मेरा, चाहे शाम हो या सवेरा।
कितनी जल्दी यह मुलाक़ात गुज़र जाती है,
प्यास बुझती नहीं बरसात गुज़र जाती है,
अपनी यादों से दिल दुखाया न करें,
नींद आती नहीं और रात गुज़र जाती है।
चांद को मामा बताए अब वो रात नहीं होती,
सावन के झूलों से अब सखियों कि बात नहीं होती,
आम और जमीन ने भी बहुत तलाशा बचपन को,
कागज की कश्ती लेकर भी अब बरसात नहीं होती।
जब जब आता है यह बरसात का मौसम,
तेरी याद होती है साथ हरदम,
इस मौसम में नहीं करेंगे याद तुझे यह सोचा है हमने,
पर फिर सोचा की बारिश को कैसे रोक पाएंगे हम।
ये जो बरसात पड़ रही है इसमें भी कोई बात है,
लगता है आज फिर किसी का दिल टुटा है।
ये बरसात की बूंदे तुम्हे भी तो भिगाती होंगी,
फिर शायद याद तुम्हे भी मेरी आती होंगी।
बरसात भी अब साहूकार सी हुई,
जब देखो तब आसूंओं से ब्याज लेती है।
बरसात की रात में मत करो शैतानी,
मौका मिला है तो क्या करोगे अपनी मनमानी,
बातें करने को बुलाया था तुमने तो आज मुझे,
अब मत करो तुम अपने इरादों से बेईमानी।
इस भीगे भीगे मौसम में थी आस तुम्हारे आने की,
तुमको अगर फुर्सत ही नहीं तो आग लगे बरसातों को।
तुझसे की हुई हर बात याद आती है,
वीराने और महफ़िल की मुलाकात याद आती है,
खिलते सूरज का दिल चांदनी रात याद आती है,
सर्दियों की फिजा और मौसम की बरसात याद आती है।
किसने भीगे हुए बालों से ये झटका पानी,
झूम के आई घटा टूट के बरसा पानी,
कोई मतवाली घटा पीके जवानी की उमंग,
दिल बहा ले गया बरसात का पहला पानी।
कभी मेरी उलझनों के हल दे जाती है।
दिल में सुकून भर जाती है, ये बरसात ही तो है।
ये तो महज़ एक छोटी सी शुरुआत है,
अभी तो बाकी पूरी बरसात है,
ऐसे सोता हूं सोना मालूम नहीं पड़ता,
मुझे मेरा ही होना मालूम नहीं पड़ता।
बरसात के दिनों में बादल छा जाता है,
मेहबूबा याद आती है बड़ा प्यार आता है,
कैसे काबू करें अब अपने एहसासों को हम,
दर्द दिल का फिर आंसुओं में नजर आता है।
कुछ तो चाहत रही होगी,
ईन बरसात की बुंदों कि भी,
वरना कोन गिरता है जमीन पर,
आसमान तक पहुँचने के बाद।
कुछ नशा तेरी बात का है,
कुछ नशा धीमी बरसात का है,
हमे तुम यूँही पागल मत समझो,
यह दिल पर असर पहली मुलाकात का है।
सोचा था किसी सुबह मिलेंगे पर रात ही नहीं हुई,
कहा तो बहुत बादलों से मैंने पर बरसात ही नहीं हुई,
तूने चाहे भुलक्कड़ ही समझ रक्खा हो हमें,
पर तुझे भुलाने जैसी यहाँ से बात ही नहीं हुई।
आशिक तो आँखों की बात समझ लेते हैं,
सपनो में मिल जाये तो मुलाकात समझ लेते हैं,
रोता तो आसमान भी है अपने बिछड़े प्यार के लिए,
पर लोग उसे बरसात समझ लेते हैं।
बिन मौसम बरसात आती है,
मेरी बदनसीबी साथ लाती है,
पतझड़ हो या मौसम बहार का,
हर घड़ी मुझे उसकी याद आती है।
बरसात का मज़ा तेरे गेसू दिखा गए,
अक्स आसमान पर जो पड़ा अब्र छा गए।