टूट पड़ती थीं घटाएँ जिन की आँखें देख कर,
वो भरी बरसात में तरसे हैं पानी के लिए।
कितनी जल्दी से मुलाकात गुजर जाती है,
प्यास बुझती नही बरसात गुजर जाती है,
अपनी यादों से कहो की यूँ ना सताया करे,
नींद आती नही और रात गुजर जाती है।
भीगी सी याद भुली हुई बात,
भुला हुआ वक्त वो भीगी सी आँखें,
वो बीता हुआ साथ,
मुबारक हो आपको साल की पहली बरसात।
रात आयी बरसात भी लायी,
उसकी याद भी साथ लाई,
रात गई बरसात भी गयी,
पर उसकी याद नही गई।
मुझे भाता है हर पल ही तुम्हारे साथ का मौसम,
कभी ये धूप गरमी की कभी बरसात का मौसम।
हैं तेरे संग जो बीती सभी शामें हसीं बीती,
मुझे अब याद आता है, वो मिठी बात का मौसम।
कुछ तो चाहत रही होगी,
ईन बरसात की बुंदों कि भी,
वरना कोन गिरता है जमीन पर,
आसमान तक पहुँचने के बाद।
तेरे जाने के बाद फिर बरसात हुई,
कौन जाने कब दिन निकला, कब रात हुई,
हम टकटकी लगाये बैठे थे तेरी आहट पे,
आसमाँ साथ में रोया, ये क्या बात हुई,
बरसात का भी मौसम होता है,
बेमौसम यह भी अच्छी नही लगती।
हैं इस हवा में क्या क्या, बरसात की बहारें,
सब्ज़ों की लहलहाहट, बाग़ात की बहारें।
देखा बिन मौसम बरसात आई है,
बड़ी खुशनुमा शाम साथ लाई है।
बरसात की भीगी रातों में फिर कोई सुहानी याद आई,
कुछ अपना जमाना याद आया कुछ उनकी जवानी याद आई,
हम भूल चुके थे जिसने हमें दुनिया में अकेला छोर दिया,
जब गौर किया तो एक सूरत जानी पहचानी याद आई।
अब ना तुम साथ हो, बस एक यादों की बरसात हो,
जो बस भिगाये ये मनन मेरा, चाहे शाम हो या सवेरा।
ये बरसात ही तो है जो मेरे गमो को बांट लेती है,
ये बूंदे कभी हल्के हल्के कभी तेजी से गिरती है,
यू लगता है मेरे जज़्बात बहा ले जाती है,
कभी जीने की नई उमीद दे जाती है।
बरसात हुई और चुपके से कानो में कह गयी,
गर्मी किसी की भी हो हमेशा नही रहती।
बादल गरज उठे हैं लगता है कयामत आने वाली है,
बड़े जोर से मोहब्बत की बरसात आने वाली है,
वो जो इश्क़ के खिलाफ़ रहते हैं वो दरवाजे बन्द रखें,
उनके घर भी बारिश के बूंदों की बारात आने वाली है।
ये जो बरसात पड़ रही है इसमें भी कोई बात है,
लगता है आज फिर किसी का दिल टुटा है।
बरसात का मज़ा तेरे गेसू दिखा गए,
अक्स आसमान पर जो पड़ा अब्र छा गए।
वो मेरे रु-ब-रु आया भी तो बरसात के मौसम में,
मेरे आँसू बह रहे थे और वो बरसात समझ बैठा।
तुझसे की हुई हर बात याद आती है,
वीराने और महफ़िल की मुलाकात याद आती है,
खिलते सूरज का दिल चांदनी रात याद आती है,
सर्दियों की फिजा और मौसम की बरसात याद आती है।
अब भी बरसात की रातों में बदन टूटता है,
जाग उठती हैं अजब ख़्वाहिशें अंगड़ाईयों की।