आज शाम हुई कल फिर सूरज निकलेगा,
भरोसा रख अपने आप पर हर पल तू निखरेगा।
हर इक पल सामने मेरे तुम्हारा ही ये चेहरा हो,
तुम्हारी ही महक लाता हवाओं का ये पहरा हो,
तुम्हारे प्यार में पागल हुआ दिल कह रहा है अब,
तुम्हें मुझ पर भरोसा और गहरा और गहरा हो।
नसीब से ज्यादा भरोसा तुम पर किया,
फिर भी नसीब इतना नहीं बदला जितना तुम बदल गई।
निगाहों में अभी तक दूसरा कोई चेहरा ही नहीं आया,
भरोसा ही कुछ ऐसा था तुम्हारे लौट आने का।
समुंदर की लहरों पर भरोसा कर बैठे,
कल वो डुबा कर हमें किनारा कर बैठे।
खुद में काबिलियत हो तो भरोसा कीजिये साहिब,
सहारे कितने भी अच्छे हो साथ छोड जाते है।
गिर पड़े उस पत्थर से टकरा कर ज़मीं पर हम,
भरोसे की नीव कह जिसे कभी अपनों ने रखा था।
यूं तो हर गुनाह का कफ़ारा नहीं होता,
उठ जाए जो एक दफा भरोसा दुबारा नहीं होता।
जो चाहे वो पा लेता है इंसान,
विश्वास में इतना दम होता है,
जो इंसान को ईश्वर देता है,
वो कभी भी कम नहीं होता हैं।