भरोसे के बाज़ार में जिंदगी बेची थी मैंने,
तब जा के कहीं पाया हैं ये लहेजा मैंने।
बहुत ख़ामोशी से टूट गया,
वो एक भरोसा जो उस पे था।
यूं तो हर गुनाह का कफ़ारा नहीं होता,
उठ जाए जो एक दफा भरोसा दुबारा नहीं होता।
एक बार फ़िर शक भरोसे से सबूत मांग रहा है,
हँस रही है क़िस्मत, फ़िर एक रिश्ता दफ़न हो रहा है।
निगाहों में अभी तक दूसरा कोई चेहरा ही नहीं आया,
भरोसा ही कुछ ऐसा था तुम्हारे लौट आने का।
आप जिस पर आँख बंद करके भरोसा करते हैं,
अक्सर वही आप की आँखें खोल जाते है।
हर इक पल सामने मेरे तुम्हारा ही ये चेहरा हो,
तुम्हारी ही महक लाता हवाओं का ये पहरा हो,
तुम्हारे प्यार में पागल हुआ दिल कह रहा है अब,
तुम्हें मुझ पर भरोसा और गहरा और गहरा हो।
भरोसा खुद पर रखो तो ताकत बन जाती है,
और दूसरों पर रखो तो कमजोरी बन जाती है।
नसीब से ज्यादा भरोसा किया था तुम पर,
नसीब इतना नहीं बदला जितना तुम बदल गये।
जब जब भरोसा किया है मेने,
तब तब भरोसा टूटा है मेरा,
अब तो किसी पर भरोसा करने का,
मन ही नही करता है मेरा।