अब शहरों में संन्नाटा है,
मजदूरों का शोर,
कुछ न कर सका इंसान,
काल पर किसका जोर।
शहर ख़ामोश है, सुनसान गलियां हैं,
हर तरफ मातम है,
ये किसकी आह ने अर्से इलाही को हिला दिया?
यु तो एक पल में आ जाऊ तुम्हारे पास,
पर तुमसे दूर रहने ही होगा,
क्योकि मैंने सुना है जालिम कोरोना,
कब साथ लग जाये इसका पता भी नहीं चलता।
कभी ये मत कहना दोस्तों,
मेरी जिंदगी मैं चाहे जैसे भी जिउ,
आज किसी एक की गलती,
पूरी दुनिया को भुगतनी पड़ रही है।
खुश तो बहुत हूं आज कल मैं,
बाहरी आबो हवा से बिछड़कर,
अपनों से मिल गया हूं।
लॉक डाउन और कोरोना ने,
कर दिया है तुम्हे और भी पास,
की अब तो तुम्हारा ख्याल भी,
दिमाग से जाता नहीं है।
या ख़ुदा, ना लगे यह रोग,
जानलेवा, किसी अनजान को,
महामारी ने कोरोना की जिंदा,
लाश बना दिया है इंसान को।
कोरोना के कारण लॉकडाउन न होता,
तुम्हारी एहमियत का एहसास नहीं होता,
अगर मजाक में भी कहते हो की तबियत ठीक नहीं,
रो देता हु क्योकि ये मुझसे बर्दाश्त नहीं होता।
अगर आप चहरे पर मास्क,
और लोगों से दुरी बना रहे हो,
तो आप भी योद्धा हो,
जो लोगों को बचा रहे हो।
इंसानों कि फितरत का,
यही तो बस एक रोना है,
अपनी हो तो खाँसी,
दूसरों की हो तो कोरोना है।
घरों में बंद है सांसे तो क्या,
जिंदगी पर ऐतबार करना ना छोड़ना,
आज़ादी का भी एक दौर था,
आज ये भी एक दौर है।
मुलाहिज़ा हो मिरी भी उड़ान पिंजरे में,
अता हुए हैं मुझे दो-जहान पिंजरे में,
ख़याल आया हमें भी ख़ुदा की रहमत का,
सुनाई जब भी पड़ी है अज़ान पिंजरे में।
हर व्यक्ति एक दूसरे को,
जैसे मिलने के लिए तरस रही है,
कहर बन कर कोरोना का,
जैसे कुदरत ही बरस रही है।
दिलबर को सिर्फ याद करना जैसे,
लफ्ज़ों को पिरोना हुआ,
सोच रहे थे होगा प्यार का बुखार,
लेकिन जालिम कोरोना हुआ।
घर से निकलने से पहले,
एक बार जरूर सोचे की,
ऐसी क्या मजबूरी है,
जो जिंदगी से ज्यादा जरूरी है।
सुबह फिर है वही मातम दर ओ दीवार के साथ,
कितनी लाशें मेरे घर आएँगी अख़बार के साथ,
हैं गुनाह अपने ज़्यादा के ये कोरोनावाइरस,
तौल के देखें कभी किरदार के साथ।
कोरोना की वजह से अच्छा,
काम भी बेकार हो गया,
महामारी से इस गरीबों का तो,
जीना ही दुश्वार हो गया।
या घर में बैठ और मुझे तस्वीर भेज दे,
फसलें वबा में वसल का अंदाज है जुदा,
खिड़की से झांक झांक के खुश हो रूह ए खुश,
पट खोल देख देख कर कुछ देर मुस्कुरा।
यूं ही बे-सबब न फिरा करो,
कोई शाम घर भी रहा करो,
वो ग़ज़ल की सच्ची किताब है,
उसे चुपके-चुपके पढ़ा करो।
घर में बंद है आज हर कोई,
मौत के खौफ की वजह से,
क्योंकि लाशें बिछ रही है,
हर तरफ कोरोना की वजह से।
सलाम है उन्हें जो हमेशा तैनात रहते है,
परवाह नहीं कितने भी मुश्किल हालत रहते हो,
खुद की फ़िक्र छोड़कर हमरी हिफाजत करते है,
ऐसे कोरोना योध्धाओ को दिल से सलाम करते है।
खुद को और अपनों को हिदायत,
देने में भलाई है हमारी,
क्योंकि कोरोना से सावधानी बरतने में ही,
समझदारी है हमारी।
मास्क और सैनिटाइजर को लेकर,
मन में कोई वहम ना रखना,
गर जकड़ लिया इस महामारी ने किसी को,
तो दिल में रहम ही रखना।
खुशी के माहौल में,
मौत का फरमान आ रहा है,
जो कहते थे गांव में क्या रखा है,
आज उन्हें भी गांव याद आ रहा है।
हाथ धोते जा रहे है साहिब,
जरा दिल भी धो लिया कीजिए,
नफरते भी तो बीमारी की तरह फैल रही है।
बड़े दौर से गुजरे है, यह दौर भी गुजर जायेगा,
थाम लो पावों को, कोरोना भी थक जायेगा।
रेल रुक गयी, विमान रुक गए,
रुक गया सारा जहान,
अब तु भी रुक जा रे इंसान,
अगर तू नही रुका तो सजा,
भोगेगा सारा हिन्दुस्तान।
देहांत से एकांत अच्छा है जीवन को बचाएं,
कोरोना वायरस सत्य है,
असत्य बनाने के लिए घर पर ही रहे।
बातें होती है कई अनजानी सी यूं,
दिल में दबाएं उन्हें ना रहने दो,
चली जाएगी जान जिस्म से वरना,
लबों को अपनों से कहने दो।
लॉकडाउन में हम क़ैद हैं बिन सलाख़ों के।
दिल में हैं उजाले तेरी आंखों के।
लौट आएँगी खुशियाँ,
अभी कुछ ग़मों का शोर है,
जरा सम्हाल कर रहो इंसान
ये इम्तिहान का दौर है।
खुद को शहंशाह मत समझिये ज़नाब,
मास्क लगा लीजिये,
आज शहंशाह ख़ुद अस्पताल में हैं।
अपने हिस्से की जिंदगी,
जी लेनी चाहिए बिना किसी शर्त हमें,
क्योंकि ना दिखने वाली कोरोना जैसी बीमारी भी,
अक्सर इंसान की ले जाती है जानें।
बड़े दौर गुज़रे हैं ज़िंदगी के,
यह दौर भी गुज़र जायेगा,
थाम लो अपने पांव को घरों में,
कोरोना भी थम जाएगा।
कैद है जमाना सारा,
पर कोई मुस्कुरा रहा है,
औकात भूल रहा था इंसान अपनी,
खुदा आज उसकी हैसियत दिखा रहा है।
ना सरहद पर लड़ने जाना है,
नहीं कोई खून बहाना है,
आत्मनिर्भर हो मेरा वतन,
मुझे स्वदेशी अपनाना है।
कोशिश कर रहा हूँ कि कोई मुझसे न रूठे,
जिन्दगी में अपनों का साथ न छूटे,
रिश्ते कोई भी हो उसे ऐसे निभाउ,
कि उस रिश्ते की डोर जिन्दगी भर ना टूटे।
जिस आशियाने मे आप बैठे बैठे बोर हो रहे हैं,
उसी तक पहुँचने के लिए,
हजारो लोग सैकड़ो किलोमीटर पैदल चल रहे हैं।
लठ भी बजाती है,
और खाना भी खिलाती है,
बस एक भारतीय पुलिस ही तो है,
जो मां जैसा फर्ज निभाती है।
अब तक लोग फॅमिली को पराया,
और बेगानो को अपना बताते थे
चलो शूकर है कोरोना ने उनकी,
ये गलत फहमी तो निकाल दी।
अपनी तन्हाई को अपने सर लेते हैं,
चल घर में खुद को अकेला कर लेते हैं,
आजकल तेरी गली से गुजर नहीं पा रहे,
सोचा तेरी यादों से गुजर लेते हैं।
यूँ पुरखों की जमीन बेचकर ना जाया करो,
कब छोड़ना पड़ जाए शहर इसलिए,
गावं में भी घर बनाया करो।
यूँ ही बे-सबब न फिरा करो,
कोई शाम घर में भी रहा करो,
वो ग़ज़ल की सच्ची किताब है,
उसे चुपके-चुपके पढ़ा करो।
कोई हाथ भी न मिलाएगा,
जो गले मिलोगे तपाक से,
ये नए मिज़ाज का शहर है,
ज़रा फ़ासले से मिला करो।
हर शहर उजड़ा-बिखरा सा लगता है,
इंसान की गलतियों पर कुदरत का कहर लगता है,
कैसी तरक्की कर ली इंसानो ने,
आज एक दूसरे से मिलने से दर लगता है।
सारे बम और दुनिया की ताकत धरी पड़ी है,
बेबस इंसान छुपा बैठा है,
एक वायरस से सबकी फटी पड़ी है।
ज़माना हो गया है,
तुमको हमने देखा नहीं है,
लॉकडाउन ने एहसास दिया है,
कोई तुम जैसा नहीं है।
बोसा ना दे गले न लगा हाथ मत मिला,
ए यार खुश जमाल मगर सामने तो आ,
दो चार गज के फासले से मुस्कुरा कर देख,
दो चार गज के फासले तक आकर लौट जा।
बन्द हैं आशियानों में अमीर बड़े शौक़ से,
भटक रही है भूखे पेट मुफ़लिसी मेरे मुल्क़ की।
जिंदगी और मौत की दिख रही दौड़,
हर तरफ है, खौफ जाये किस ओर,
खतरा तो यहाँ हर शख्स से है जनाब,
चेहरा नहीं बताता किससे मिले किसे दे छोड़।