बेदर्द दुनिया में अभी जीना सीख रहा हूँ,
अभी तो मैं दुखों के जाम पीना सीख रहा हूँ,
कोशिश करूंगा तुम्हे मैं भी भुलाने की,
अभी तो मैं तेरे झूठे वादों को भुलाना सीख रहा हूँ।
बहुत अजीब हैं ये बंदिशें मोहब्बत की,
कोई किसी को टूट कर चाहता है,
और कोई किसी को चाह कर टूट जाता है।
मेरी जुदाई में वो मिलकर नहीं गया,
उसके बगैर मैं भी कोई मर नहीं गया।
आँख तो प्यार में दिल की ज़ुबान होती है,
चाहत तो सदा बेज़ुबान होती है,
प्यार में दर्द भी मिले तो क्या घबराना,
सुना है दर्द से चाहत और जवान होती है।
हर बात में आंसू बहाया नहीं करते,
दिल की बात हर किसी को बताया नहीं करते,
लोग मुट्ठी में नमक लेके घूमते है,
दिल के जख्म हर किसी को दिखाया नहीं करते।
प्यार सभी को जीना सिखा देता है,
वफ़ा के नाम पे मरना सिखा देता है,
प्यार नहीं किया तो करके देख लो यार,
ज़ालिम हर दर्द सहना सिखा देता है।
इजाज़त हो तो तेरे चेहरे को देख लूँ जी भर के,
मुद्दतों से इन आँखों ने कोई बेवफा नहीं देखा।
मत फेंक पानी मे पत्थर,
उसे भी कोई पिता है,
मत रहो खफा जिंदगी से,
तुम्हे देखकर भी कोई जीता है।
कोई अच्छी सी सज़ा दो मुझको,
चलो ऐसा करो भूला दो मुझको,
तुमसे बिछडु तो मौत आ जाये,
दिल की गहराई से ऐसी दुआ दो मुझको।
खुशियों से नाराज़ है मेरी ज़िन्दगी,
बस प्यार की मोहताज़ है मेरी ज़िन्दगी,
हँस लेता हूँ लोगों को दिखाने के लिए,
वैसे तो दर्द की किताब है मेरी ज़िन्दगी।
कभी सोचा न था के वो मुझे तनहा कर जायेगा,
जो अक्सर परेशां देख कर कहता था, मैं हूँ ना।
हसीनो ने हसीन बनकर गुनाह किया,
औरों को तो क्या हमको भी तबाह किया,
पेश किया जब ग़ज़लों में हमने उनकी बेवफ़ाई को,
औरों ने तो क्या उन्होने भी वाह-वाह किया।
मेरे इस दर्द की वजह भी वो है,
और मेरे दर्द की दवा भी तो वो है,
वो नमक ज़ख्मों पे लगाते है तो क्या,
मोहब्बत करने की वजह भी तो वो है।
तुमको पाने की तमन्ना नहीं,
फिर भी खोने का डर है,
देखो कितनी शिद्दत से मैनें,
तुमसे मोहब्बत की है।
वो नाराज़ हैं हमसे कि हम कुछ लिखते नहीं,
कहाँ से लाएं लफ्ज़ जब हमको मिलते नहीं,
दर्द की ज़ुबान होती तो बता देते शायद,
वो ज़ख्म कैसे दिखाए जो दिखते नहीं।
ना कर तू इतनी कोशिशे,
मेरे दर्द को समझने की,
पहले इश्क़ कर, फिर ज़ख्म खा,
फिर लिख दवा मेरे दर्द की।
हमारे बिन अधूरे तुम रहोगे,
कभी चाहा था किसी ने तुम ये खुद कहोगे,
न होगे हम तो किसीके तुम ये खुद कहोगे,
मिलेगे बहुत से लेकिन कोई हम सा पागल ना होगा।
लिखूं कुछ आज यह वक़्त का तकाजा है,
मेरे दिल का दर्द अभी ताजा-ताजा है,
गिर पड़ते हैं मेरे आंसू मेरे ही कागज पर,
लगता है कि कलम में स्याही का दर्द ज्यादा है।
वो जान गयी थी हमें दर्द में मुस्कराने की आदत है,
देती थी नया जख्म वो रोज मेरी ख़ुशी के लिए।
हर सितम सह कर कितने ग़म छिपाये हमने,
तेरी खातिर हर दिन आँसू बहाये हमने,
तू छोड़ गया जहाँ हमें राहों में अकेला,
बस तेरे दिए ज़ख्म हर एक से छिपाए हमने।