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Lafz Shayari in Hindi - लफ़्ज शायरी इन हिंदी

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कभी तेरी बातें भूल जाऊं, कभी तेरे लफ्ज़ भूल जाऊं,
इस कदर मोहब्बत है तुझसे के अपनी ज़ात भूल जाऊं,
तेरे पास से उठ के जब मैं चल दूँ ऐ मेरे हमदम,
जाते जाते खुद को तेरे पास भूल जाऊं।

जुबां से लफ्ज़ नहीं,
बस आखों से अश्क़ बह रहे हैं,
मुझ बेगुनाह को सजा देने के लिए,
ना जाने लोग क्यों चीख-चीख कर कह रहे हैं।

बोलने से पहले लफ्ज,
इन्सान के गुलाम होते हैं,
लेकिन बोलने के बाद इंसान,
अपने लफ्ज का गुलाम हो जाता है।

दो चार लफ्ज़ प्यार के लेकर हम क्या करेंगे,
देनी है तो वफ़ा की मुकम्मल किताब दे दो।

तू मुझमे पहले भी था, तू मुझमें अब भी है,
पहले मेरे लफ़्ज़ों में था, अब मेरी खामोशियों में है।

हर बात, लफ़्ज़ों क़ी मोहताज़ हो,
ये ज़रूरी तो नहीं,
कुछ बातें, बिना अल्फ़ाज़ के भी,
खूबसूरती से बोली और समझी जाती हैं ।

मुझ से खुशनसीब हैं मेरे लिखे हुए ये लफ्ज़,
जिनको कुछ देर तक पढेगी, निगाह तेरी।

छुपी होती है हर लफ़्ज मे दिल की बात,
लोग शायरी समझ कर वाह-वाह कर देते।

ये जो तुम लफ्जों से बार-बार चोट देते हो ना,
दर्द वही होता है जहां तुम रहते हो।

जब लफ्ज़ खामोश हो जाते हैं,
तब आँखे बात करती है,
पर बड़ा मुश्किल होता है,
उन सवालों का जवाब देना,
जब आँखे सवाल करती हैं।

न जाने कैसे लोग मां को लिख लेते है,
मुझे उस की अज़मत में हर लफ्ज़ फीका लगता है।

तुझे लफ्ज़ सुनाई नहीं देते,
इसका मतलब ये नहीं की हम ज़िक्र नहीं करते,
तू हमे पूछता नहीं,
इसका मतलब ये नहीं की हम तेरी फ़िक्र नहीं करते।

मुझको पढ़ना हो तो मेरी शायरी पढ़ लो,
लफ्ज़ बेमिसाल ना सही, जज़्बात लाजवाब होंगे।

मुश्किल नहीं इस कदर यूँ तो, ये बयाँ जज़्बात का,
ये लफ्ज़ आ बीच में क्यों, दुश्वारियाँ रख देते हैं।

अपने हर लफ्ज़ में कहर रखते हैं हम,
रहें खामोश फिर भी असर रखते हैं हम।

लफ्ज मगरुर हो जायें, चलता है,
मगर स्वभाव मगरुर हो जाये तो खलता है।

लफ्ज़ मोहोब्बत का ना,
जाने कहाँ से सीखा दिल ने,
जब से सुना है तेरी आवाज़ को,
तेरा ही नाम लेता रहता है।

अपने लफ्ज़ो पर ज़रा गौर कर के बता,
उनमे लफ्ज़ कितने थे और तीर कितने थे।

दर्द इतने हैं की लफ्ज़ बता नहीं पाएंगे,
चुभ इतने रहे हैं की तुम्हारे कान सुन नहीं पाएंगे।

लफ़्ज़ों का पर्दा था पीछे मजबूरी छुपी थी,
मुस्कराहट का पहरा लगा था, अंदर से रूह तक दुखी थी।

आंखों की बात है आंखों को ही कहने दो,
कुछ लफ़्ज लबों पर मैले हो जाते हैं।

लिख दू तो लफ्ज़ तुम हो,
सोच लू तो ख्याल तुम हो,
मांग लू तो मन्नत तुम हो,
और चाह लू तो मोहोब्बत भी तुम ही हो।

लफ्ज लफ्ज जोड़कर बात कर पाता हूं,
उसपे कहते हैं वो कि, मैं बात बनाता हूं।

ज़बाँ खामोश हो तो भी नज़र को लफ्ज़ दीजिये,
बिन बोले बिन समझे से अहसाह मरते है।

लफ्ज़ उनके फ़िर करवटें ले रहे है,
शक है मुझे मेरी फ़िर तबाही का।

लड़िए, रूठिए पर बातें बंद न कीजिये,
बातों से अक्सर उलझाने सुलझ जाती हैं,
गुम होते हैं लफ्ज़, बंद होती है जुबां,
संबंध की डोर ऐसे में और उलझ जाती है।

लफ़्ज़ जब सीमायें पार कर जाते हैं,
तो अर्थ दिल को दुखाते हैं।

लफ़्ज़ों में ज़िक्र है, दिमाग में फ़िक्र है,
मैं यहाँ हूँ तड़प में, ना जाने तू सुकून में किधर है।

वक़्त तेरे बिन अब बिता नहीं पाते,
ये लफ्ज़ मजबूर तुझे बता नहीं पाते।

अरसे बित गए तेरी तारीफ लिखते लिखते,
दो लफ्ज़ तू भी कभी मेरे सब्र पर ही कह दे।

लफ्जों से बया भावनाओं में लिपटा,
मै बदन नहीं रूह को छूता हुआ,
अपने वजूद को महसूस की एक आड में
छुपाता हुआ एक एहसास।

खामोश रहकर खरीद ली दूरियां हमने,
लफ्ज़ खर्च करना हमने जरूरी नहीं समझा।

लफ़्ज़ों को तो मेरी सब सुन लेते है,
कोई खामोशी समझ जाए तो उसे खुदा बना लूँ।

लफ़्ज़ों की इतनी औकात नहीं थी,
वो तो मेरी आँखें थी जिन्होंने दर्द बयां कर दिया।

वाह-वाह कर के,
सब दूर हो जाते हे धीरे-धीरे,
ये लफ्ज़ कैसे निकलते हे जहन से ,
जानने की तकलीफ कौन करता हे साहब।

बहुत असर रखता है, हर लफ्ज़ उसकी जुबान का,
ए काश के वो मुझसे मिलने की दुआ मांगे।

मेरी ख़ामोशी से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता,
और शिकायत में दो लफ्ज़ कह दूँ तो वो चुभ जातें हैं।

अपने हर एक लफ्ज़ का खुद आइना हो जाऊँगा,
किसी को छोटा कहकर मैं कैसे बड़ा हो जाऊँगा?

लफ्ज आईने हैं, मत इन्हें उछाल के चल,
अदब की राह मिली है तो, देखभाल के चल,
मिली है ज़िन्दगी तुझे इसी मकसद से,
सँभाल खुद को भी और, औरों को सँभाल के चल।

लफ़्ज़ों का इस्तेमाल ज़रा संभल कर कीजिए,
ये परवरिश का पक्का सबूत होते हैं।

मोहब्बत दिल से होती है,
लफ़्ज़ों का तो काम ही झूठ कहना है।

गर तुम लफ्जों के बादशाह हो,
तो हम भी खामोशियों पर राज करते है।

वो लफ्ज कहाँ से लाऊं जो तेरे दिल को मोम कर दें,
मेरा वजूद पिघल रहा है तेरी बेरूखी से।

लफ्ज़-ए-तस्सली तो,
एक तक्कलुफ है साहब,
वरना जिसका दर्द, उसी का दर्द,
बाक़ी सबके लिए वो तमाशा ही है।

बिखर जाती हूँ पन्नों पर मैं अक्सर लफ्ज़ बनकर,
अल्फ़ाज़ों माफ़ कर देना तुम्हे बेघर जो करती हूँ।

ताक़त अपने लफ्ज़ों में डालो, आवाज में नहीं,
क्योंकि फसल बारिश से उगती है, बाढ़ से नही।

किसी ने पूछा इतना अच्छा कैसे लिख लेते हो,
मैंने कहा दिल तोड़ना पड़ता है लफ़्ज़ों को जोड़ने से पहले।

खामोश बहार अंदर ज़ोरों से चीख रहा हूँ,
लफ्ज़ नहीं ये दर्द लिख रहा हूँ।

ये जो मेरे लफ़्ज़ों को सुन नहीं पाते,
खामोश हो जाऊंगा तो इनके कान फट जाएंगे।

मैं शिकायत भी करूं तो क्यों करूं,
यह तो किस्मत की बात है,
मैं तेरे सोच में नहीं हूं कहीं और,
तुम मुझे लफ्ज़ लफ्ज़ याद है।




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