मेरी जुदाई में वो मिलकर नहीं गया,
उसके बगैर मैं भी कोई मर नहीं गया।
हकीक़त कहो तो उनको ख्वाब लगता है,
शिकायत करो तो उनको मजाक लगता है,
कितनी शिद्दत से उन्हें याद करते हैं हम,
और एक वो हैं जिन्हें ये सब इत्तेफाक लगता है।
सितारो को रोशनी की क्या ज़रूरत,
ये तो खुद को जला लेते हे,
आशिक़ो को वफ़ा की क्या ज़रूरत,
वो तो बेवफा को भी प्यार कर लेते हे।
कभी सोचा न था के वो मुझे तनहा कर जायेगा,
जो अक्सर परेशां देख कर कहता था, मैं हूँ ना।
तुमको पाने की तमन्ना नहीं,
फिर भी खोने का डर है,
देखो कितनी शिद्दत से मैनें,
तुमसे मोहब्बत की है।
दर्द है दिल में पर इसका एहसास नहीं होता,
रोता है दिल जब वो पास नहीं होता,
बर्बाद हो गए हम उसके प्यार में,
और वो कहते हैं इस तरह प्यार नहीं होता।
खुशियों से नाराज़ है मेरी ज़िन्दगी,
बस प्यार की मोहताज़ है मेरी ज़िन्दगी,
हँस लेता हूँ लोगों को दिखाने के लिए,
वैसे तो दर्द की किताब है मेरी ज़िन्दगी।
सोचता हूँ सागर की लहरों को देख कर,
क्यूँ ये किनारे से टकरा कर पलट जातें हैं,
करते हैं ये सागर से बेवफाई,
या फिर सागर से वफ़ा निभातें हैं।
कभी कभी मोहब्बत में वादे टूट जाते हैं,
इश्क़ के कच्चे धागे टूट जाते हैं,
झूठ बोलता होगा कभी चाँद भी,
इसलिए तो रुठकर तारे टूट जाते हैं।
टूटे मक़ान वाले दिल में ताजमहल रखता हूँ,
बात गहरी मगर अल्फ़ाज़ सरल रखता हूँ।
लिखूं कुछ आज यह वक़्त का तकाजा है,
मेरे दिल का दर्द अभी ताजा-ताजा है,
गिर पड़ते हैं मेरे आंसू मेरे ही कागज पर,
लगता है कि कलम में स्याही का दर्द ज्यादा है।
ठोकर ना लगा मुझे पत्थर नही हूँ मैं,
हैरत से ना देख कोई मंज़र नही हूँ मैं,
उनकी नज़र में मेरी कदर कुछ भी नही,
मगर उनसे पूछो जिन्हें हासिल नही हूँ मैं।
बेताब हम भी थे दर्द जुदाई की कसम,
रोता वो भी होगा नज़रें चुरा चुरा कर।
मेरे इस दर्द की वजह भी वो है,
और मेरे दर्द की दवा भी तो वो है,
वो नमक ज़ख्मों पे लगाते है तो क्या,
मोहब्बत करने की वजह भी तो वो है।
हर सितम सह कर कितने ग़म छिपाये हमने,
तेरी खातिर हर दिन आँसू बहाये हमने,
तू छोड़ गया जहाँ हमें राहों में अकेला,
बस तेरे दिए ज़ख्म हर एक से छिपाए हमने।
रोने की सज़ा न रुलाने की सज़ा है,
ये दर्द मोहब्बत को निभाने की सज़ा है,
हँसते हैं तो आँखों से निकल आते हैं आँसू,
ये उस शख्स से दिल लगाने की सज़ा है।
दर्द कितना है बता नहीं सकते,
ज़ख़्म कितने हैं दिखा नहीं सकते,
आँखों से समझ सको तो समझ लो,
आँसू गिरे हैं कितने गिना नहीं सकते।
तरस गए आपके दिदार को,
फिर भी दिल आप ही को याद करता है,
हमसे खुश नसिब तो आपके घर का आईना है,
जो हर रोज आपके हुस्न का दिदार करता है।
वो नाराज़ हैं हमसे कि हम कुछ लिखते नहीं,
कहाँ से लाएं लफ्ज़ जब हमको मिलते नहीं,
दर्द की ज़ुबान होती तो बता देते शायद,
वो ज़ख्म कैसे दिखाए जो दिखते नहीं।
बिन बताये उसने ना जाने क्यों ये दूरी कर दी,
बिछड़ के उसने मोहब्बत ही अधूरी कर दी,
मेरे मुकद्दर में ग़म आये तो क्या हुआ,
खुदा ने उसकी ख्वाहिश तो पूरी कर दी।