शाम आती है तो ये सोच के डर जाता हूँ,
आज की रात मेरे शहर पे भारी तो नहीं।
जिन्दगी की हर सुबह,
कुछ शर्ते लेकर आती हैं,
और जिन्दगी की हर शाम,
कुछ तजुर्बे देकर जाती हैं।
ढलते दिन सा मैं, गुजरती रात सी तुम,
अब थम भी जाओ, एक मुलाकात को,
तेरे आने की उम्मीद और भी तड़पाती है,
मेरी खिड़की पे जब शाम उतर आती है।
कँपकँपाती शाम ने, कल माँग ली चादर मेरी,
और जाते-जाते, जाड़े को इशारा कर दिया।
हमने एक शाम चिरागो से सज़ा रखी है,
शर्त लोगो ने हवाओं से लगा रखी है।
चाँद सा चेहरा देखने की इज़ाज़त दे दो,
मुझे ये शाम सजाने की इज़ाज़त दे दो,
मुझे कैद कर लो अपने इश्क़ में या फिर,
मुझे इश्क़ करने की इज़ाज़त दे दो।
शाम सूरज को ढलना सिखाती है,
शमा परवाने को जलना सिखाती है ,
गिरने वाले को होती तो है तकलीफ ,
पर ठोकर इंसान को चलना सिखाती है।
मैं सोचता था, मेरा नाम गुनगुना रही है वो,
न जाने क्यों लगा मुझे, के मुस्कुरा रही है वो,
वो शाम कुछ अजीब थी, ये शाम भी अजीब है,
वो कल भी पास-पास थी, वो आज भी करीब है।
हम अपनी शाम को जब नज़र-ए-जाम करते हैं,
अदब से हमको सितारे सलाम करते है।
रोज़ ढलती हुई शाम से डर लगता है,
अब मुझे प्यार के अंजाम से डर लगता है,
जब से तुमने मुझे धोखा दिया,
तबसे मोहब्बत के नाम से भी डर लगता है।