फिजा में महकती शाम हो तुम,
प्यार का छलकता जाम हो तुम,
सीने में छुपाये फिरते हैं तुम्हें,
मेरी ज़िन्दगी का दूसरा नाम हो तुम।
खुशबू जैसे लोग मिले अफ़साने में,
एक पुराना खत खोला अनजाने में,
शाम के साये बालिस्तों से नापे हैं,
चाँद ने कितनी देर लगा दी आने में।
दिन ख्वाहिशों में गुजरता है,
रात खयालों में कटती है,
शाम का आलम ना पूछो,
मयकदे जाओगे तो समझोगे।
उस की आँखों में उतर जाने को जी चाहता है,
शाम होती है तो घर जाने को जी चाहता है।
शाम सूरज को ढलना सिखाती है,
शमा परवाने को जलना सिखाती है ,
गिरने वाले को होती तो है तकलीफ ,
पर ठोकर इंसान को चलना सिखाती है।
हर सुबह को अपनी सांसों में रखो,
हर शाम को अपनी बाहों में रखो,
हर जीत आपकी मुट्ठी में है बस,
अपनी मंजिल को आंखों में रखो।
सुबह तुझ से होगी मेरी शाम तुझ से होगी,
जो तू मुझे मिले तो मेरी पहचान तुझ से होगी,
में प्यार का परिंदा ये गगन चूमता हूँ,
मिल जाये जो शेह तेरी तो मेरी उड़ान तुझ से होगी।
मैं सोचता था, मेरा नाम गुनगुना रही है वो,
न जाने क्यों लगा मुझे, के मुस्कुरा रही है वो,
वो शाम कुछ अजीब थी, ये शाम भी अजीब है,
वो कल भी पास-पास थी, वो आज भी करीब है।
रोज़ ढलती हुई शाम से डर लगता है,
अब मुझे प्यार के अंजाम से डर लगता है,
जब से तुमने मुझे धोखा दिया,
तबसे मोहब्बत के नाम से भी डर लगता है।
दिन गुज़र जाता है आपको सोच सोच कर,
आती है शाम दिन गुजर जाने के बाद,
कटती नहीं शाम की तन्हाईयाँ,
जाती नहीं तेरी याद तेरे जाने के बाद।
साक़िया एक नज़र जाम से पहले पहले,
हम को जाना है कहीं शाम से पहले पहले।
शाम आती है तो ये सोच के डर जाता हूँ,
आज की रात मेरे शहर पे भारी तो नहीं।
मुझे उस सहर की हो क्या ख़ुशी,
जो हो जुल्मतों में घिरी हुई,
मेरी शाम-ए-ग़म को जो लूट ले,
मुझ उस शहर की तलाश है।
रात के इंतज़ार में सुबह से मुलाकात हो गई,
शायद कल की वो शाम ढलना भुल गई
कहाँ की शाम और कैसी सहर, जब तुम नही होते,
तड़पता है ये दिल आठो पहर, जब तुम नही होते।
शाम होते ही यह दिल उदास होता है,
सपनो के सिवा कुछ नहीं पास होता है,
आप को बहुत याद करते है हम,
यादो का हर लम्हा मेरे लिए ख़ास होता है।
एक शाम आती हैं तेरी याद लेकर,
एक शाम जाती हैं तेरी याद लेकर,
हमें तो उस शाम का इन्तजार है,
जो आयें तुम्हे साथ लेकर।
शाम खाली है जाम खाली है,
ज़िन्दगी यूँ गुज़रने वाली है,
सब लूट लिया तुमने जानेजाँ मेरा,
मैने तन्हाई मगर बचा ली है।
यूँ तो हर शाम उमीदों में गुज़र जाती है,
आज कुछ बात है जो शाम पे रोना आया।
बस एक शाम का हर शाम इंतज़ार रहा,
मगर वो शाम किसी शाम भी नहीं आई।
शाम होते ही आ मिलती है मुझसे,
ये तेरी याद मेरे हर शाम की मुंतजीर है,
आओ एक शाम बैठो पास मेरे और देखो,
ये जो मंजर है कितना बेनजीर है।