शाम आती है तो ये सोच के डर जाता हूँ,
आज की रात मेरे शहर पे भारी तो नहीं।
कँपकँपाती शाम ने, कल माँग ली चादर मेरी,
और जाते-जाते, जाड़े को इशारा कर दिया।
यूँ तो हर शाम उमीदों में गुज़र जाती है,
आज कुछ बात है जो शाम पे रोना आया।
साक़िया एक नज़र जाम से पहले पहले,
हम को जाना है कहीं शाम से पहले पहले।
मैं सोचता था, मेरा नाम गुनगुना रही है वो,
न जाने क्यों लगा मुझे, के मुस्कुरा रही है वो,
वो शाम कुछ अजीब थी, ये शाम भी अजीब है,
वो कल भी पास-पास थी, वो आज भी करीब है।
एक दर्द छुपा हो सीने में,
तो मुस्कान अधूरी लगती है,
जाने क्यों बिन तेरे मुझको,
हर शाम अधूरी लगती है।
एक शाम आती हैं तेरी याद लेकर,
एक शाम जाती हैं तेरी याद लेकर,
हमें तो उस शाम का इन्तजार है,
जो आयें तुम्हे साथ लेकर।
शाम होते ही आ मिलती है मुझसे,
ये तेरी याद मेरे हर शाम की मुंतजीर है,
आओ एक शाम बैठो पास मेरे और देखो,
ये जो मंजर है कितना बेनजीर है।
मुझे ना जाने की ख़ुशी है अब,
अब ना ही मरने का है ग़म,
उनसे मिलने की दुआ भी नहीं करते हम,
क्योंकि अब हर शाम है उनकी यादो के संग।
ये उदास शाम और तेरी ज़ालिम याद,
खुदा खैर करे अभी तो रात बाकि है।
बस एक शाम का हर शाम इंतज़ार रहा,
मगर वो शाम किसी शाम भी नहीं आई।
रात के इंतज़ार में सुबह से मुलाकात हो गई,
शायद कल की वो शाम ढलना भुल गई
कहाँ की शाम और कैसी सहर, जब तुम नही होते,
तड़पता है ये दिल आठो पहर, जब तुम नही होते।
चाँद सा चेहरा देखने की इज़ाज़त दे दो,
मुझे ये शाम सजाने की इज़ाज़त दे दो,
मुझे कैद कर लो अपने इश्क़ में या फिर,
मुझे इश्क़ करने की इज़ाज़त दे दो।
दिन ख्वाहिशों में गुजरता है,
रात खयालों में कटती है,
शाम का आलम ना पूछो,
मयकदे जाओगे तो समझोगे।
कितनी जल्दी ये शाम आ गयी,
गुड नाईट कहने की बात याद आ गयी,
हम तो बैठे थे सितारों की महफ़िल में,
चाँद को देखा तो आपकी याद आ गयी।
जिसमें न चमकते हों मोहब्बत के सितारे,
वो शाम अगर है तो मेरी शाम नहीं है।
रोज़ ढलती हुई शाम से डर लगता है,
अब मुझे प्यार के अंजाम से डर लगता है,
जब से तुमने मुझे धोखा दिया,
तबसे मोहब्बत के नाम से भी डर लगता है।
काश ये शाम कभी ढले ना,
काश ये शाम मोहब्बत की रुके ना,
हो जाए आज दिल की चाहते सारी पूरी,
और दिल की कोई चाहत बचे ना।
दिल से दिल की बस यही दुआ है,
आज फिर से हमको कुछ हुआ है,
शाम ढलते ही आती है याद आपकी,
लगता है प्यार आपसे ही हुआ है।
कभी कभी शाम ऐसे ढलती है,
जैसे घूंघट उतर रहा हो,
तुम्हारे सीने से उठता धुआँ,
हमारे दिल से गुज़र रहा हो।