मेरी सुबह को तुम रोशनी दे दो,
मेरी शामो को तुम चांदनी दे दो,
मांगता हूं मैं तुमसे अपनी जिंदगी,
बस अपने क़दमों में मुझे पनाह दे दो।
खुशबू जैसे लोग मिले अफ़साने में,
एक पुराना खत खोला अनजाने में,
शाम के साये बालिस्तों से नापे हैं,
चाँद ने कितनी देर लगा दी आने में।
कभी शाम होने के बाद,
मेरे दिल में आकर देखना,
खयालों की महफ़िल सजी होती है,
और जिक्र सिर्फ तुम्हारा होता है।
कितनी जल्दी ये शाम आ गयी,
गुड नाईट कहने की बात याद आ गयी,
हम तो बैठे थे सितारों की महफ़िल में,
चाँद को देखा तो आपकी याद आ गयी।
ये उदास शाम और तेरी ज़ालिम याद,
खुदा खैर करे अभी तो रात बाकि है।
शाम खाली है जाम खाली है,
ज़िन्दगी यूँ गुज़रने वाली है,
सब लूट लिया तुमने जानेजाँ मेरा,
मैने तन्हाई मगर बचा ली है।
यूँ तो हर शाम उम्मीदों में गुज़र जाती थी,
आज कुछ बात है जो शाम पे रोना आया,
ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया,
जाने क्यों आज तेरे नाम पे रोना आया।
शाम होते ही दिल उदास हो जाता है,
सपनों के सिवा ना कुछ खास होता है.
आपको तो बहुत याद करते हैं हम,
यादों का लम्हा मेरे लिए कुछ खास होता है।
तेरी उल्फत को कभी नाकाम ना होने देंगे,
तेरे प्यार को कभी बदनाम न होने देंगे,
मेरी जिंदगी में सूरज निकले न निकले,
तेरी ज़िंदगी में कभी शाम ना होने देंगे।
दर्द की शाम है, आँखों में नमी है,
हर सांस कह रही है, फिर तेरी कमी है।
जिसमें न चमकते हों मोहब्बत के सितारे,
वो शाम अगर है तो मेरी शाम नहीं है।
शायर कहकर बदनाम ना करना मुझे दोस्तो,
मै तो रोज शाम को दिनभर का हिसाब लिखता हूं।
मुझे उस सहर की हो क्या ख़ुशी,
जो हो जुल्मतों में घिरी हुई,
मेरी शाम-ए-ग़म को जो लूट ले,
मुझ उस शहर की तलाश है।
तेरी निगाह उठे तो सुबह हो,
पलके झुके तो शाम हो जाये,
अगर तू मुस्कुरा भर दे तो,
कत्ले आम हो जाये।
बस एक शाम का हर शाम इंतज़ार रहा,
मगर वो शाम किसी शाम भी नहीं आई।
जिन्दगी की हर सुबह,
कुछ शर्ते लेकर आती हैं,
और जिन्दगी की हर शाम,
कुछ तजुर्बे देकर जाती हैं।
हर सुबह को अपनी सांसों में रखो,
हर शाम को अपनी बाहों में रखो,
हर जीत आपकी मुट्ठी में है बस,
अपनी मंजिल को आंखों में रखो।
दीये तो आँधी में भी जला करते हैं,
गुलाब तो कांटो में ही खिला करते हैं,
खुश नसीब बहुत होती हैं वो शाम,
दोस्त आप जैसे जब मिला करते हैं।
कभी कभी शाम ऐसे ढलती है,
जैसे घूंघट उतर रहा हो,
तुम्हारे सीने से उठता धुआँ,
हमारे दिल से गुज़र रहा हो।
मैं सोचता था, मेरा नाम गुनगुना रही है वो,
न जाने क्यों लगा मुझे, के मुस्कुरा रही है वो,
वो शाम कुछ अजीब थी, ये शाम भी अजीब है,
वो कल भी पास-पास थी, वो आज भी करीब है।