उस की आँखों में उतर जाने को जी चाहता है,
शाम होती है तो घर जाने को जी चाहता है।
खुशबू जैसे लोग मिले अफ़साने में,
एक पुराना खत खोला अनजाने में,
शाम के साये बालिस्तों से नापे हैं,
चाँद ने कितनी देर लगा दी आने में।
शायर कहकर बदनाम ना करना मुझे दोस्तो,
मै तो रोज शाम को दिनभर का हिसाब लिखता हूं।
चाँद सा चेहरा देखने की इज़ाज़त दे दो,
मुझे ये शाम सजाने की इज़ाज़त दे दो,
मुझे कैद कर लो अपने इश्क़ में या फिर,
मुझे इश्क़ करने की इज़ाज़त दे दो।
दीये तो आँधी में भी जला करते हैं,
गुलाब तो कांटो में ही खिला करते हैं,
खुश नसीब बहुत होती हैं वो शाम,
दोस्त आप जैसे जब मिला करते हैं।
शाम होते ही आ मिलती है मुझसे,
ये तेरी याद मेरे हर शाम की मुंतजीर है,
आओ एक शाम बैठो पास मेरे और देखो,
ये जो मंजर है कितना बेनजीर है।
वादा किया है तो ज़रूर निभाएंगे,
चाँद की किरण बनकर छत पे आएंगे,
हम हैं तो जुदाई का गम कैसा,
तेरी हर शाम को फूलों से सजाएंगे।
वो आके पहलू में ऐसे बैठे,
के शाम रंगीन हो गई है,
जरा जरा सी खिली है तबीयत,
जरा सी गमगीन हो गई है।
एक शाम आती हैं तेरी याद लेकर,
एक शाम जाती हैं तेरी याद लेकर,
हमें तो उस शाम का इन्तजार है,
जो आयें तुम्हे साथ लेकर।
मैं सोचता था, मेरा नाम गुनगुना रही है वो,
न जाने क्यों लगा मुझे, के मुस्कुरा रही है वो,
वो शाम कुछ अजीब थी, ये शाम भी अजीब है,
वो कल भी पास-पास थी, वो आज भी करीब है।