हकीक़त कहो तो उनको ख्वाब लगता है,
शिकायत करो तो उनको मजाक लगता है,
कितनी शिद्दत से उन्हें याद करते हैं हम,
और एक वो हैं जिन्हें ये सब इत्तेफाक लगता है।
एक सिलसिले की उमीद थी जिनसे,
वही फ़ासले बनाते गये,
हम तो पास आने की कोशिश मे थे,
जाने क्यूँ वो दूरियाँ बढ़ाते गये।
हादसे इंसान के संग मसखरी करने लगे,
लफ्ज कागज पर उतर जादूगरी करने लगे,
कामयाबी जिसने पाई उनके घर बस गए,
जिनके दिल टूटे वो आशिक शायरी करने लगे।
हमारे बिन अधूरे तुम रहोगे,
कभी चाहा था किसी ने तुम ये खुद कहोगे,
न होगे हम तो किसीके तुम ये खुद कहोगे,
मिलेगे बहुत से लेकिन कोई हम सा पागल ना होगा।
बड़े महँगे किरदार है ज़िंदगी में साहिब,
समय समय पर सबके भाव बढ़ जाते है।
बिन बताये उसने ना जाने क्यों ये दूरी कर दी,
बिछड़ के उसने मोहब्बत ही अधूरी कर दी,
मेरे मुकद्दर में ग़म आये तो क्या हुआ,
खुदा ने उसकी ख्वाहिश तो पूरी कर दी।
सब सो गए अपना दर्द अपनों को सुना के,
कोई होता मेरा तो मुझे भी नींद आ जाती।
सोचता हूँ सागर की लहरों को देख कर,
क्यूँ ये किनारे से टकरा कर पलट जातें हैं,
करते हैं ये सागर से बेवफाई,
या फिर सागर से वफ़ा निभातें हैं।
नींद से मेरा ताल्लुक़ ही नहीं बरसों से,
ख्वाब आ आ के मेरी छत पे टहलते क्यों है।
तरस गए आपके दिदार को,
फिर भी दिल आप ही को याद करता है,
हमसे खुश नसिब तो आपके घर का आईना है,
जो हर रोज आपके हुस्न का दिदार करता है।
आँख तो प्यार में दिल की ज़ुबान होती है,
चाहत तो सदा बेज़ुबान होती है,
प्यार में दर्द भी मिले तो क्या घबराना,
सुना है दर्द से चाहत और जवान होती है।
तेरे बाद खुद को इतना तनहा पाया,
जैसे लोग हमें दफना के चले गए हो।
लिखूं कुछ आज यह वक़्त का तकाजा है,
मेरे दिल का दर्द अभी ताजा-ताजा है,
गिर पड़ते हैं मेरे आंसू मेरे ही कागज पर,
लगता है कि कलम में स्याही का दर्द ज्यादा है।
खामोशियाँ कर देती बयां तो अलग बात है,
कुछ दर्द है जो लफ़्ज़ों में उतारे नहीं जाते।
कहाँ कोई ऐसा मिला जिस पर हम दुनिया लुटा देते,
हर एक ने धोखा दिया, किस-किस को भुला देते,
अपने दिल का ज़ख्म दिल में ही दबाये रखा,
बयां करते तो महफ़िल को रुला देते।
मेरी जुदाई में वो मिलकर नहीं गया,
उसके बगैर मैं भी कोई मर नहीं गया।
मोहब्बत ख़ूबसूरत होगी किसी और दुनिया में,
इधर तो हम पर जो गुज़री है हम ही जानते हैं।
हकीक़त कहो तो उनको ख्वाब लगता है,
शिकायत करो तो उनको मजाक लगता है,
कितनी शिद्दत से उन्हें याद करते हैं हम,
और एक वो हैं जिन्हें ये सब इत्तेफाक लगता है।
दर्द कितना है बता नहीं सकते,
ज़ख़्म कितने हैं दिखा नहीं सकते,
आँखों से समझ सको तो समझ लो,
आँसू गिरे हैं कितने गिना नहीं सकते।
बेताब हम भी थे दर्द जुदाई की कसम,
रोता वो भी होगा नज़रें चुरा चुरा कर।
बेदर्द दुनिया में अभी जीना सीख रहा हूँ,
अभी तो मैं दुखों के जाम पीना सीख रहा हूँ,
कोशिश करूंगा तुम्हे मैं भी भुलाने की,
अभी तो मैं तेरे झूठे वादों को भुलाना सीख रहा हूँ।