Rahat Indori Shayari in Hindi - राहत इंदौरी शायरी इन हिंदी
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सूरज, सितारे, चाँद मेरे साथ में रहें,
जब तक तुम्हारे हाथ मेरे हाथ में रहें,
शाखों से टूट जाए वो पत्ते नहीं हैं हम,
आंधी से कोई कह दे की औकात में रहें।
इस दुनिया ने मेरी वफ़ा का कितना ऊँचा मोल दिया,
बातों के तेजाब में, मेरे मन का अमृत घोल दिया,
जब भी कोई इनाम मिला हैं, मेरा नाम तक भूल गए,
जब भी कोई इलज़ाम लगा हैं, मुझ पर लाकर ढोल दिया।
इन्तेज़ामात नए सिरे से संभाले जाएँ,
जितने कमजर्फ हैं महफ़िल से निकाले जाएँ,
मेरा घर आग की लपटों में छुपा हैं लेकिन,
जब मज़ा हैं, तेरे आँगन में उजाला जाएँ।
साँसों की सीडियों से उतर आई जिंदगी,
बुझते हुए दिए की तरह, जल रहे हैं हम,
उम्रों की धुप, जिस्म का दरिया सुखा गयी,
हैं हम भी आफताब, मगर ढल रहे हैं हम।
गुलाब, ख्वाब, दवा, ज़हर, जाम क्या क्या हैं,
में आ गया हु बता इंतज़ाम क्या क्या हैं,
फ़क़ीर, शाह, कलंदर, इमाम क्या क्या हैं,
तुझे पता नहीं तेरा गुलाम क्या क्या हैं।
तेरी हर बात मोहब्बत में गँवारा करके,
दिल के बाज़ार में बैठे हैं खसारा करके,
मैं वो दरिया हूँ कि हर बूंद भंवर है जिसकी,
तुमने अच्छा ही किया मुझसे किनारा करके।
रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है,
चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है,
रोज़ पत्थर की हिमायत में ग़ज़ल लिखते हैं,
रोज़ शीशों से कोई काम निकल पड़ता है।
मैंने दिल दे कर उसे की थी वफ़ा की इब्तिदा,
उसने धोखा दे के ये किस्सा मुकम्मल कर दिया,
शहर में चर्चा है आख़िर ऐसी लड़की कौन है,
जिसने अच्छे खासे एक शायर को पागल कर दिया।
जिस दिन से तुम रूठीं, मुझ से, रूठे रूठे हैं,
चादर वादर, तकिया वकिया, बिस्तर विस्तर सब,
मुझसे बिछड़ कर, वह भी कहां अब पहले जैसी है,
फीके पड़ गए कपड़े वपड़े, ज़ेवर वेवर सब।
इश्क में पीट के आने के लिए काफी हूँ,
मैं निहत्था ही ज़माने के लिए काफी हूँ,
हर हकीकत को मेरी, खाक समझने वाले,
मैं तेरी नींद उड़ाने के लिए काफी हूँ,
ये हादसा तो किसी दिन गुजरने वाला था,
में बच भी जाता तो मरने वाला था,
मेरा नसीब मेरे हाथ कट गए,
वरना में तेरी मांग में सिन्दूर भरने वाला था।
जवान आँखों के जुगनू चमक रहे होंगे,
अब अपने गाँव में अमरुद पक रहे होंगे,
भुलादे मुझको मगर, मेरी उंगलियों के निशान,
तेरे बदन पे अभी तक चमक रहे होंगे।
अब जो बाज़ार में रखे हो तो हैरत क्या है,
जो भी देखेगा वो पूछेगा की कीमत क्या है,
एक ही बर्थ पे दो साये सफर करते रहे,
मैंने कल रात यह जाना है कि जन्नत क्या है।
लू भी चलती थी तो बादे-शबा कहते थे,
पांव फैलाये अंधेरो को दिया कहते थे,
उनका अंजाम तुझे याद नही है शायद,
और भी लोग थे जो खुद को खुदा कहते थे।
मौसमो का ख़याल रखा करो,
कुछ लहू मैं उबाल रखा करो,
लाख सूरज से दोस्ताना हो,
चंद जुगनू भी पाल रखा करो।
राज़ जो कुछ हो इशारों में बता देना,
हाथ जब उससे मिलाओ दबा भी देना,
नशा वेसे तो बुरी शे है, मगर,
“राहत” से सुननी हो तो थोड़ी सी पिला भी देना।
नयी हवाओं की सोहबत बिगाड़ देती हैं,
कबूतरों को खुली छत बिगाड़ देती हैं,
जो जुर्म करते है इतने बुरे नहीं होते,
सज़ा न देके अदालत बिगाड़ देती हैं।
नए सफ़र का नया इंतज़ाम कह देंगे,
हवा को धुप, चरागों को शाम कह देंगे,
किसी से हाथ भी छुप कर मिलाइए,
वरना इसे भी मौलवी साहब हराम कह देंगे।
अब ना मैं हूँ, ना बाकी हैं ज़माने मेरे,
फिर भी मशहूर हैं शहरों में फ़साने मेरे,
ज़िन्दगी है तो नए ज़ख्म भी लग जाएंगे,
अब भी बाकी हैं कई दोस्त पुराने मेरे।
उसे अब के वफ़ाओं से गुजर जाने की जल्दी थी,
मगर इस बार मुझ को अपने घर जाने की जल्दी थी,
मैं आखिर कौन सा मौसम तुम्हारे नाम कर देता,
यहाँ हर एक मौसम को गुजर जाने की जल्दी थी।
इश्क ने गूथें थे जो गजरे नुकीले हो गए,
तेरे हाथों में तो ये कंगन भी ढीले हो गए,
फूल बेचारे अकेले रह गए है शाख पर,
गाँव की सब तितलियों के हाथ पीले हो गए।
सफ़र की हद है वहां तक की कुछ निशान रहे,
चले चलो की जहाँ तक ये आसमान रहे,
ये क्या उठाये कदम और आ गयी मंजिल,
मज़ा तो तब है के पैरों में कुछ थकान रहे।
बन के इक हादसा बाज़ार में आ जाएगा,
जो नहीं होगा वो अखबार में आ जाएगा,
चोर उचक्कों की करो कद्र, की मालूम नहीं,
कौन, कब, कौन सी सरकार में आ जाएगा।
दिलों में आग, लबों पर गुलाब रखते हैं,
सब अपने चहेरों पर, दोहरी नकाब रखते हैं,
हमें चराग समझ कर भुझा ना पाओगे,
हम अपने घर में कई आफ़ताब रखते हैं।
फैसला जो कुछ भी हो, हमें मंजूर होना चाहिए,
जंग हो या इश्क हो, भरपूर होना चाहिए,
भूलना भी हैं, जरुरी याद रखने के लिए,
पास रहना है, तो थोडा दूर होना चाहिए।
कश्ती तेरा नसीब चमकदार कर दिया,
इस पार के थपेड़ों ने उस पार कर दिया,
अफवाह थी की मेरी तबियत ख़राब हैं,
लोगो ने पूछ पूछ के बीमार कर दिया।
जागने की भी, जगाने की भी, आदत हो जाए,
काश तुझको किसी शायर से मोहब्बत हो जाए,
दूर हम कितने दिन से हैं, ये कभी गौर किया,
फिर न कहना जो अमानत में खयानत हो जाए।
उसकी कत्थई आंखों में हैं जंतर मंतर सब,
चाक़ू वाक़ू, छुरियां वुरियां, ख़ंजर वंजर सब,
जिस दिन से तुम रूठीं,मुझ से, रूठे रूठे हैं,
चादर वादर, तकिया वकिया, बिस्तर विस्तर सब।
हाथ ख़ाली हैं तेरे शहर से जाते जाते,
जान होती तो मेरी जान लुटाते जाते,
अब तो हर हाथ का पत्थर हमें पहचानता है,
उम्र गुज़री है तेरे शहर में आते जाते।
तूफ़ानों से आँख मिलाओ, सैलाबों पे वार करो,
मल्लाहों का चक्कर छोड़ो, तैर के दरिया पार करो,
फूलों की दुकानें खोलो, ख़ुशबू का व्यापार करो,
इश्क़ ख़ता है तो ये ख़ता एक बार नहीं सौ बार करो।
चेहरों के लिए आईने कुर्बान किये हैं,
इस शौक में अपने बड़े नुकसान किये हैं,
महफ़िल में मुझे गालियाँ देकर है बहुत खुश,
जिस शख्स पर मैंने बड़े एहसान किये है।
आँख में पानी रखो, होंटों पे चिंगारी रखो,
ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो,
एक ही नदी के हैं ये दो किनारे दोस्तो,
दोस्ताना ज़िंदगी से मौत से यारी रखो।
अब आयें या न आयें इधर पूछते चलो,
क्या चाहती है उनकी नजर पूछते चलो,
हम से अगर है तर्क-ए-ताल्लुक तो क्या हुआ,
यारो कोई तो उनकी खबर पूछते चलो।
कभी महक की तरह हम गुलों से उड़ते हैं,
कभी धुए की तरह परबतों से उड़ते हैं,
ये कैंचियाँ हमें उड़ने से ख़ाक रोकेंगी,
के हम परों से नहीं हौसलों से उड़ते हैं।
छू गया जब कभी ख़याल तेरा,
दिल मेरा देर तक धड़कता रहा,
कल तेरा जिक्र छिड़ गया था घर में
और घर देर तक महकता रहा।
जा के ये कह दो कोई शोलो से चिंगारी से,
फूल इस बार खिले है बड़ी तय्यारी से,
बादशाहों से भी फेंके हुए सिक्के ना लिए,
हमने ख़ैरात भी माँगी है तो ख़ुद्दारी से।
आग के पास कभी मोम को लाकर देखूं,
हो इज़ाज़त तो तुझे हाथ लगाकर देखूं,
दिल का मंदिर बड़ा वीरान नज़र आता है,
सोचता हूँ तेरी तस्वीर लगाकर देखूं।
जुबा तो खोल, नज़र तो मिला,जवाब तो दे,
में कितनी बार लुटा हु, मुझे हिसाब तो दे,
तेरे बदन की लिखावट में हैं उतार चढाव,
में तुझको कैसे पढूंगा, मुझे किताब तो दे।
रोज़ तारों को नुमाइश में खलल पड़ता हैं,
चाँद पागल हैं अन्धेरें में निकल पड़ता हैं,
उसकी याद आई हैं सांसों, जरा धीरे चलो,
धडकनों से भी इबादत में खलल पड़ता हैं।
दोस्ती जब किसी से की जाये,
दुश्मनों की भी राय ली जाए,
बोतलें खोल के तो पि बरसों,
आज दिल खोल के पि जाए।
अजनबी ख़्वाहिशें सीने में दबा भी न सकूँ,
ऐसे ज़िद्दी हैं परिंदे कि उड़ा भी न सकूँ,
फूँक डालूँगा किसी रोज़ मैं दिल की दुनिया,
ये तेरा ख़त तो नहीं है कि जला भी न सकूँ।
लोग हर मोड़ पे रुक रुक के संभलते क्यों हैं,
इतना डरते हैं तो फिर घर से निकलते क्यों हैं,
मोड़ होता हैं जवानी का संभलने के लिए,
और सब लोग यही आके फिसलते क्यों हैं।
तुफानो से आँख मिलाओ, सैलाबों पे वार करो,
मल्लाहो का चक्कर छोड़ो, तैर कर दरिया पार करो,
फूलो की दुकाने खोलो, खुशबु का व्यापर करो,
इश्क खता हैं, तो ये खता एक बार नहीं, सौ बार करो।
ये सहारा जो न हो तो परेशां हो जाए,
मुश्किलें जान ही लेले अगर आसान हो जाए,
ये कुछ लोग फरिस्तों से बने फिरते हैं,
मेरे हत्थे कभी चढ़ जाये तो इन्सां हो जाए।
जवानिओं में जवानी को धुल करते हैं,
जो लोग भूल नहीं करते, भूल करते हैं,
अगर अनारकली हैं सबब बगावत का,
सलीम हम तेरी शर्ते कबूल करते हैं।
आँखों में पानी रखों, होंठो पे चिंगारी रखो,
जिंदा रहना है तो तरकीबे बहुत सारी रखो,
राह के पत्थर से बढ के, कुछ नहीं हैं मंजिलें,
रास्ते आवाज़ देते हैं, सफ़र जारी रखो।
हर एक हर्फ का अन्दाज बदल रक्खा है,
आज से हमने तेरा नाम ग़ज़ल रक्खा है,
मैंने शाहों की मोहब्बत का भरम तोड़ दिया,
मेरे कमरे में भी एक ताजमहल रक्खा है।
अकेले में मिलकर झंझोड़ दूँगा उसे,
जहाँ जहाँ से वो टूटा है जोड़ दूँगा उसे,
मुझे वो छोड़ गया ये कमाल है उस का,
इरादा मैंने किया था की छोड़ दूँगा उसे।
हाथ खाली हैं तेरे शहर से जाते-जाते,
जान होती तो मेरी जान लुटाते जाते,
अब तो हर हाथ का पत्थर हमें पहचानता है,
उम्र गुजरी है तेरे शहर में आते जाते।
अजीब लोग हैं मेरी तलाश में मुझको,
वहाँ पर ढूंढ रहे हैं जहाँ नहीं हूँ मैं,
मैं आईनों से तो मायूस लौट आया था,
मगर किसी ने बताया बहुत हसीं हूँ मैं।