तुझको बेहतर बनाने की कोशिश में,
तुझे ही वक्त नहीं दे पा रहे हम,
माफ़ करना ऐ ज़िंदगी,
तुझे ही नहीं जी पा रहे हम।
उम्र जाया कर दी लोगो ने,
औरों में नुक्स निकालते निकालते,
इतना खुद को तराशा होता,
तो फरिश्ते बन जाते।
ख़ामोशी का हासिल भी,
इक लम्बी सी ख़ामोशी थी,
उन की बात सुनी भी,
हम ने अपनी बात सुनाई भी।
सामने आया मेरे, देखा भी, बात भी की,
मुस्कुराए भी किसी पहचान की खातिर,
कल का अखबार था, बस देख लिया, रख भी दिया।
ये शर्म है या हया है, क्या है,
नज़र उठाते ही झुक गयी है,
तुम्हारी पलकों से गिरती शबनम हमारी,
आंखों में रुक गयी है।
कब से बैठा हुआ हूँ मैं जानम,
सादे काग़ज़ पे लिखके नाम तेरा,
बस तेरा नाम ही मुकम्मल है,
इससे बेहतर भी नज़्म क्या होगी।
वो कटी फटी हुई पत्तियां,
और दाग़ हल्का हरा हरा,
वो रखा हुआ था किताब में,
मुझे याद है वो ज़रा ज़रा।
कोई वादा नहीं किया लेकिन,
क्यों तेरा इंतजार रहता है,
बेवजह जब क़रार मिल जाए,
दिल बड़ा बेकरार रहता है।
एक उम्मीद बार बार आ कर,
अपने टुकड़े तलाश करती है,
बूढ़ी पगडंडी शहर तक आ कर,
अपने बेटे तलाश करती है।
वो एक दिन एक अजनबी को,
मेरी कहानी सुना रहा था,
वो उम्र कम कर रहा था मेरी,
मैं साल अपने बढ़ा रहा था ।
मैं हर रात ख्वाईशो को,
खुद से पहले सुला देता हूं,
हैरत यह है की हर सुबह,
ये मुझसे पहले जग जाती है।
काँच के पीछे चाँद भी था,
और काँच के ऊपर काई भी,
तीनों थे हम वो भी थे,
और मैं भी था, तन्हाई भी।
कैसे कह दू कि महंगाई बहुत है,
मेरे शहर के चौराहे पर आज भी,
एक रुपये में कई कई दुआएं मिलती है।