वो नाराज़ हैं हमसे कि हम कुछ लिखते नहीं,
कहाँ से लाएं लफ्ज़ जब हमको मिलते नहीं,
दर्द की ज़ुबान होती तो बता देते शायद,
वो ज़ख्म कैसे दिखाए जो दिखते नहीं।
कहाँ कोई ऐसा मिला जिस पर हम दुनिया लुटा देते,
हर एक ने धोखा दिया, किस-किस को भुला देते,
अपने दिल का ज़ख्म दिल में ही दबाये रखा,
बयां करते तो महफ़िल को रुला देते।
ग़म इसका नहीं कि तू मेरा न हो सका,
मेरी मोहब्बत में मेरा सहारा ना बन सका,
ग़म तो इसका भी नहीं कि सुकून दिल का लुट गया,
ग़म तो इसका है कि मोहब्बत से भरोसा ही उठ गया।
बेताब हम भी थे दर्द जुदाई की कसम,
रोता वो भी होगा नज़रें चुरा चुरा कर।
दाद देते है हम तुम्हारे नजरअंदाज करने के हुनर को,
जिस ने भी सिखाया है वो उस्ताद कमाल का होगा।
किस्मत पर एतबार किसको हैं,
मिल जाये खुशी इंकार किसको हैं,
कुछ मजबूरिया हैं मेरे दोस्त,
वरना जुदाई से प्यार किसको हैं।
वो जान गयी थी हमें दर्द में मुस्कराने की आदत है,
देती थी नया जख्म वो रोज मेरी ख़ुशी के लिए।
कभी सोचा न था के वो मुझे तनहा कर जायेगा,
जो अक्सर परेशां देख कर कहता था, मैं हूँ ना।
ऐसा नहीं कि आप हमें याद नहीं आते,
माना कि जहाँ के सब रिश्ते निभाये नहीं जाते,
जो बस जाते हैं दिल में वो भुलाए नहीं जाते,
पर बेवफाओं से हर तरह के रिश्ते निभाये नहीं जाते।
हकीक़त कहो तो उनको ख्वाब लगता है,
शिकायत करो तो उनको मजाक लगता है,
कितनी शिद्दत से उन्हें याद करते हैं हम,
और एक वो हैं जिन्हें ये सब इत्तेफाक लगता है।