वो सजदा ही क्या,
जिसमे सर उठाने का होश रहे,
इज़हारे इश्क़ का मज़ा तो तब है,
जब मैं बेचैन रहूं और वो खामोश रहे।
वो सज़दा ही क्या,
जिसमें सर उठाने का होश रहे,
इज़हारे इश्क का मजा तो तब है,
जब मैं खामोंश और तू बैचेन रहे।
तेरे पास में बैठना भी इबादत,
तुझे दूर से देखना भी इबादत,
न माला, न मंतर, न पूजा, न सजदा,
तुझे हर घड़ी सोचना भी इबादत।
हर एक सज़दा मंजूर ए खुदा हो जाए,
तेरी दुआओं के संग रब की रजा हो जाए,
मिले आज तुम्हे वो खुशियां हजारों,
साल तक गुम तुझ से खफा हो जाए।
करो दिल से सजदा तो इबादत बनेगी,
मां-बाप की सेवा अमानत बनेगी,
खुलेगा जब तुम्हारी गुनाहों का खाता,
तो मां-बाप की सेवा अमानत बनेगी।
मेरी इबादतों को ऐसे कर कबूल ऐ मेरे खुदा,
के सजदे में मैं झुकूं तो,
मुझसे जुड़े हर रिश्ते की जिंदगी संवर जाए।
आखरी बार तेरे प्यार का सजदा कर लूं,
लौट के फिर तेरी महफिल में नही आऊंगा,
अपनी बर्बाद मोहब्बत का जनाजा लेकर,
तेरी दुनिया से बहुत दूर चला जाऊंगा।