जीते थे हम भी कभी शान से,
महक उठी थी जिंदगी किसी के नाम से,
मगर फिर गुज़रे उस मुकाम से,
कि नफ़रत सी हो गई मोहब्बत के नाम से।
प्यार-मोहब्बत की बस इतनी सी कहानी है,
इक टूटी हुई कश्ती और ठहरा हुआ पानी है,
इक फूल जो किताबों में कहीं दम तोड़ चुका है,
कुछ याद नहीं आता किसकी निशानी है।
बड़ी आसानी से दिल लगाए जाते है,
पर बड़ी मुश्किल से वादे निभाए जाते है,
ले जाती है मोहब्बत उन राहों पर,
जहाँ दीये नहीं दिल जलाए जाते है।
रास्ते खुद ही तबाही के निकाले हम ने,
कर दिया दिल किसी पत्थर के हवाले हमने,
हाँ, मालूम है क्या चीज़ है मुहब्बत यारो,
अपना ही घर जल कर देखें है उजाले हमने।
मोहब्बत की कश्ती में
सोच समझ कर सवार होना मेरे दोस्त,
जब ये चलती है तो किनारा नहीं मिलता,
और जब डूबती है तो सहारा नहीं मिलता।
मरना चाहें तो मर नहीं सकते,
तुम भी जीना मुहाल करते हो,
अब किस-किस की मिसाल दूँ तुम को,
हर सितम बे-मिसाल करते हो।
वो पानी की लहरों पे क्या लिख रहा था,
खुदा जाने हरफ-ऐ-दुआ लिख रहा था,
मोहोब्बत में नफरत मिली थी उसे भी,
जो हर शक्स को बेवफा लिख रहा था।
रोना पड़ता है मुस्कुराने के बाद,
याद आते है वो दूर जाने के बाद,
दिल तो दुखता है उसी के लिए,
जो अपना ना हो सके इतनी मोहब्बत जताने के बाद।
ना मेरा दिल बुरा था
ना उसमे कोई बुराई थी,
बस नसीब का खेल है
क्योंकि किस्मत में जुदाई थी।
दर्द दे गए सितम भी दे गए,
ज़ख़्म के साथ वो मरहम भी दे गए,
दो लफ़्ज़ों से कर गए अपना मन हल्का,
और हमें कभी ना रोने की कसम दे गए।
अब ये भी नहीं ठीक के हर दर्द मिटा दें,
कुछ दर्द तो कलेजे से लगाने के लिए है,
ये इल्म का सौदा, ये रिसाले, ये किताबें,
एक शख्स की यादों को भुलाने के लिए है।
रोया है बहुत तब जरा करार मिला है,
इस जहाँ में किसे भला सच्चा प्यार मिला है,
गुजर रही है जिंदगी इम्तिहान के दौर से,
एक ख़तम तो दूसरा तैयार मिला है।
आँखों के सागर में ये जलन है कैसी,
आज दिल को तड़पने की लगन है कैसी,
बर्फ की तरह पिघल जायेगी जिंदगी,
ये तेरी दूर रहने की कसम है कैसी।
जीने की ख्वाहिश में हर रोज़ मरते है,
वो आये न आये हम इंतज़ार करते है,
झूठा ही सही मेरे यार का वादा,
हम सच मान कर ऐतबार करते है।
बस इतना कसूर था मेरा,
एकतरफा प्यार किया उसको,
बताता भी तो कैसे बताता,
किसी और से प्यार था उसको।
कहाँ कोई ऐसा मिला जिस पर हम दुनिया लुटा देते,
हर एक ने धोखा दिया, किस-किस को भुला देते,
अपने दिल का ज़ख्म दिल में ही दबाये रखा,
बयां करते तो महफ़िल को रुला देते।
अब ये भी नहीं ठीक कि हर दर्द मिटा दे,
कुछ दर्द तो कलेजे से लगाने के लिए है,
यह इल्म का सौदा, ये रिसाले, ये किताबे,
इक शख्स की यादों को भुलाने के लिए है।
मेरी चाहत ने उसे खुशी दे दी,
बदले में उसने मुझे सिर्फ खामोशी दे दी,
खुदा से दुआ मांगी मरने की लेकिन,
उसने भी तड़पने के लिए जिन्दगी दे दी।
जहाँ खामोश फिजा थी, साया भी न था,
हमसा कोई किसी जुर्म में आया भी न था,
न जाने क्यों छिनी गई हमसे हंसी,
हमने तो किसी का दिल दुखाया भी न था।
अब भी ताज़ा है जख्म सिने में,
बिन तेरे क्या रखा है जीने में,
हम तो जिन्दा है तेरा साथ पाने को,
वर्ना देर नहीं लगती है जहर पीने में।