एक हस्ती है जो जान है मेरी,
जो जान से भी बढ़कर शान है मेरी,
रब हुक्म दे तो कर दूं सजदा उसे,
क्योंकि वो कोई और नहीं माँ है मेरी।
माँ मुझको लोरी सुना दो,
अपनी गोद में मुझे सुला लो,
वही चंदा मामा वाली,
सात खिलौनों वाली लोरी फिर से सुना दो।
ज़िंदगी में उसका दुलार काफ़ी है,
सर पर उसका हाथ काफी है,
दूर हो या पास क्या फर्क पड़ता है,
माँ का तो बस एहसास ही काफ़ी है।
माँ तो जन्नत का फूल है प्यार करना उसका उसूल है,
दुनिया की मोहब्बत फिजूल है माँ की हर दुआ कबूल है,
माँ को नाराज करना इंसान तेरी भूल है,
माँ के कदमो की मिट्टी जन्नत की धूल है।
है एक कर्ज़ जो हर दम सवार रहता है,
वो माँ का प्यार है . सब पर उधार रहता है।
मंज़िल दूर और सफ़र बहुत है,
छोटी सी जिंदगी की फिकर बहुत है,
मार डालती ये दुनिया कब की हमें,
लेकिन माँ की दूवाओं में असर बहुत है।
मुझे माफ़ कर मेरे या खुदा,
झुक कर करू तेरा सजदा,
तुझसे भी पहले माँ मेरे लिए,
ना कर कभी मुझे माँ से जुदा।
सोच बदल कर देखिए जिंदगी बदल जाएगी,
मंदिर में किसे खुश करने जाते है,
जब भगवान घर में ही उदास बैठे है।
रूह के रिश्तो की यह गहराइयां तो देखिए,
चोट लगती है हमें और दर्द मां को होता है।
मैं सब कुछ भूल सकता हूँ, तुम्हे नहीं माँ,
मुस्कुराने की वजह सिर्फ तुम हो।
माँ कर देती है पर गिनाती नहीं है,
वो सह लेती है पर सुनाती नहीं है।
पेट पर लात खाके फिर भी प्यार लुटाती है,
एक माँ ही है जो सच्चे प्यार की मूरत कहलाती है।
मां कहती नहीं लेकिन सब कुछ समझती है,
दिल की और जुबां की दोनों भाषा समझती है।
सर पर जो हाथ फेरे, तो हिम्मत मिल जाए,
माँ एक बार मुस्कुरा दे, तो जन्नत मिल जाए।
माँ से बढ़कर कोई नाम क्या होगा,
इस नाम का हमसे एहतराम क्या होगा,
जिसके पैरों के नीचे जन्नत है,
उसके सर का मक़ाम क्या होगा।
दिन की रौशनी ख्वाबो को बनाने मे गुजर गयी,
रात की नींद बच्चे को सुलाने मे गुजर गयी,
जिस मकान मे तेरे नाम की तख्ती भी नहीं है,
सारी उम्र उस मकान को बनाने मे गुजर गयी।
जिसके होने से मैं खुद को मुक्कम्मल मानता हूँ,
में खुदा से पहले मेरी माँ को जानता हूँ।
इन चलती फिरती आँखों से दुनिया देखी है,
मेने जन्नत तो नही देखी लेकिन माँ देखी है।
न अपनों से खुलता है न ही गैरों से खुलता है,
ये जन्नत का दरवाज़ा है माँ के पैरो से खुलता है।
गिन लेती है दिन बगैर मेरे गुजारे हैं कितने,
भला कैसे कह दूं कि माँ अनपढ़ है मेरी।