न अपनों से खुलता है न ही गैरों से खुलता है,
ये जन्नत का दरवाज़ा है माँ के पैरो से खुलता है।
जो सब पर कृपा करे उसे ईश्वर कहते है,
जो ईश्वर को भी जन्म दें उसे मां कहते है।
मां कहती नहीं लेकिन सब कुछ समझती है,
दिल की और जुबां की दोनों भाषा समझती है।
खूबसूरती की इंतहा बेपनाह देखी,
जब मैंने मुस्कराती हुई माँ देखी।
जिसके होने से मैं खुद को मुक्कम्मल मानता हूँ,
में खुदा से पहले मेरी माँ को जानता हूँ।
मेरी तकदीर में कभी कोई गम नहीं होता,
अगर तकदीर लिखने का हक मेरी माँ को होता।
माँ से बढ़कर कोई नाम क्या होगा,
इस नाम का हमसे एहतराम क्या होगा,
जिसके पैरों के नीचे जन्नत है,
उसके सर का मक़ाम क्या होगा।
बिना बताए ही वो हर बात जान जाती है,
वो माँ ही तो अपनी दोस्त बन जाती है,
अगर कोई मुसीबत आए तो ढाल बन जाती है,
वो माँ ही है जो दुआ बन जाती है।
माँ तो जन्नत का फूल है प्यार करना उसका उसूल है,
दुनिया की मोहब्बत फिजूल है माँ की हर दुआ कबूल है,
माँ को नाराज करना इंसान तेरी भूल है,
माँ के कदमो की मिट्टी जन्नत की धूल है।
पहाड़ो जैसे सदमे झेलती है उम्र भर लेकिन,
बस इक औलाद के सितम से माँ टूट जाती है।
बिना हुनर के भी वो चार औलाद पाल लेती है,
कैसे कह दूं कि माँ अनपढ़ है मेरी।
दुनिया की मोहब्बत फिजूल है,
माँ की हर दुआ कबूल है,
माँ को नाराज करना इंसान तेरी भूल है,
माँ के कदमों की मिट्टी जन्नत की धूल है।
जो शिक्षा का ज्ञान दे उसे शिक्षक कहते है,
और जो खुशियों का वरदान दे उसे मां कहते है।
है एक कर्ज़ जो हर दम सवार रहता है,
वो माँ का प्यार है . सब पर उधार रहता है।
माँ कर देती है पर गिनाती नहीं है,
वो सह लेती है पर सुनाती नहीं है।
बिन कहे आँखों में सब पढ़ लेती है,
बिन कहे जो गलती माफ़ कर दे वो माँ है।
जब भी गन्दा होता हूँ मैं वो साफ़ कर देती है,
अपनी हर संतान के साथ इन्साफ कर देती है,
नाराज होना तो फितरत होती है औलादों की,
माँ से जब भी माफ़ी मांगो हर खता माफ़ कर देती है।
रूह के रिश्तो की यह गहराइयां तो देखिए,
चोट लगती है हमें और दर्द मां को होता है।
मां तेरे एहसास की खुशबू हमेशा ताजा रहती है,
तेरी रहमत की बारिश से मुरादें भीग जाती है।
ज़िंदगी में उसका दुलार काफ़ी है,
सर पर उसका हाथ काफी है,
दूर हो या पास क्या फर्क पड़ता है,
माँ का तो बस एहसास ही काफ़ी है।