चलती फिरती आंखों से अजां देखी है,
मैंने जन्नत तो नहीं देखी लेकिन मां देखी है।
जो शिक्षा का ज्ञान दे उसे शिक्षक कहते है,
और जो खुशियों का वरदान दे उसे मां कहते है।
जिसके होने से मैं खुद को मुक्कम्मल मानता हूँ,
में खुदा से पहले मेरी माँ को जानता हूँ।
माँ कर देती है पर गिनाती नहीं है,
वो सह लेती है पर सुनाती नहीं है।
बिन कहे आँखों में सब पढ़ लेती है,
बिन कहे जो गलती माफ़ कर दे वो माँ है।
माँ तो जन्नत का फूल है प्यार करना उसका उसूल है,
दुनिया की मोहब्बत फिजूल है माँ की हर दुआ कबूल है,
माँ को नाराज करना इंसान तेरी भूल है,
माँ के कदमो की मिट्टी जन्नत की धूल है।
पहाड़ो जैसे सदमे झेलती है उम्र भर लेकिन,
बस इक औलाद के सितम से माँ टूट जाती है।
वक़्त आँखों से जब नींदें चुरा लेता है,
दर्द आँखों में घरौंदा बना लेता है,
ज़ख्म यादों के सिरहाने बैठ जाता है,
माँ की गोद तन्हाई को बना लेता है।
उनके लिए हर मासूम हर बहार होता है,
जिनके हिस्से में माँ का प्यार होता है।
एक दुनिया हैं जो समझाने से भी नहीं समझती,
एक माँ थी बिन बोले सब समझ जाती थी।