खूबसूरती की इंतहा बेपनाह देखी,
जब मैंने मुस्कराती हुई माँ देखी।
माँ खुद भूखी होती है, मुझे खिलाती है,
खुद दुःखी होती है, मुझे चैन की नींद सुलाती है।
जब भी गन्दा होता हूँ मैं वो साफ़ कर देती है,
अपनी हर संतान के साथ इन्साफ कर देती है,
नाराज होना तो फितरत होती है औलादों की,
माँ से जब भी माफ़ी मांगो हर खता माफ़ कर देती है।
वक़्त आँखों से जब नींदें चुरा लेता है,
दर्द आँखों में घरौंदा बना लेता है,
ज़ख्म यादों के सिरहाने बैठ जाता है,
माँ की गोद तन्हाई को बना लेता है।
न अपनों से खुलता है न ही गैरों से खुलता है,
ये जन्नत का दरवाज़ा है माँ के पैरो से खुलता है।
मैं सब कुछ भूल सकता हूँ, तुम्हे नहीं माँ,
मुस्कुराने की वजह सिर्फ तुम हो।
माँ से बढ़कर कोई नाम क्या होगा,
इस नाम का हमसे एहतराम क्या होगा,
जिसके पैरों के नीचे जन्नत है,
उसके सर का मक़ाम क्या होगा।
मेरी तकदीर में कभी कोई गम नहीं होता,
अगर तकदीर लिखने का हक मेरी माँ को होता।
मेरी याद में माँ मेरी, गिन लेती है दिन सारे,
फिर भला कैसे कह दू, अनपढ़ है माँ मेरी।
बिना हुनर के भी वो चार औलाद पाल लेती है,
कैसे कह दूं कि माँ अनपढ़ है मेरी।