मां की दुआ को क्या नाम दूं,
उसका हाथ हो सर पर तो मुकद्दर जाग उठता है।
माँ तेरी याद सताती है मेरे पास आ जाओ,
थक गया हूँ मुझे अपने आँचल मे सुलाओ,
उंगलियाँ अपनी फेर कर बालो में मेरे,
एक बार फिर से बचपन कि लोरियां सुनाओ।
दुनिया की मोहब्बत फिजूल है,
माँ की हर दुआ कबूल है,
माँ को नाराज करना इंसान तेरी भूल है,
माँ के कदमों की मिट्टी जन्नत की धूल है।
जब भी गन्दा होता हूँ मैं वो साफ़ कर देती है,
अपनी हर संतान के साथ इन्साफ कर देती है,
नाराज होना तो फितरत होती है औलादों की,
माँ से जब भी माफ़ी मांगो हर खता माफ़ कर देती है।
मां तेरे एहसास की खुशबू हमेशा ताजा रहती है,
तेरी रहमत की बारिश से मुरादें भीग जाती है।
माँ की दुआएँ ज़िन्दगी बना देंगी,
खुद रोएगी पर तुम्हें हंसा देगी,
कभी ना रुलाना अपनी माँ को,
ये गलती पूरा अर्श हिला देगी।
किसी को जन्नत तो किसी को दो जहान चाहिए,
किसी को धन दौलत तो किसी को मकान चाहिए,
मुझे नहीं गरज़ इन नेअमतों की या रब,
जिसकी खिदमत से मिले सब वो माँ चाहिए।
सख्त राहों में भी आसान सफर लगता है,
यह मेरी माँ की दुआओं का ही असर लगता है।
इन चलती फिरती आँखों से दुनिया देखी है,
मेने जन्नत तो नही देखी लेकिन माँ देखी है।
पहाड़ो जैसे सदमे झेलती है उम्र भर लेकिन,
बस इक औलाद के सितम से माँ टूट जाती है।