खूबसूरती की इंतहा बेपनाह देखी,
जब मैंने मुस्कराती हुई माँ देखी।
माँ खुद भूखी होती है, मुझे खिलाती है,
खुद दुःखी होती है, मुझे चैन की नींद सुलाती है।
मेरी तकदीर में कभी कोई गम नहीं होता,
अगर तकदीर लिखने का हक मेरी माँ को होता।
पेट पर लात खाके फिर भी प्यार लुटाती है,
एक माँ ही है जो सच्चे प्यार की मूरत कहलाती है।
इन चलती फिरती आँखों से दुनिया देखी है,
मेने जन्नत तो नही देखी लेकिन माँ देखी है।
मुझे फर्क नही पड़ता ये दुनिया मुझे क्या कहती है,
में बहुत अच्छा हु, माँ ये मेरी कहती है।
दिन की रौशनी ख्वाबो को बनाने मे गुजर गयी,
रात की नींद बच्चे को सुलाने मे गुजर गयी,
जिस मकान मे तेरे नाम की तख्ती भी नहीं है,
सारी उम्र उस मकान को बनाने मे गुजर गयी।
माँ मैं तुझको खोना नहीं चाहती,
तुझे देख रोना नहीं चाहती,
तुझ से जुड़ गया है दिल मेरा,
तुझे छोड़ कुछ पाना नही चाहती।
मंज़िल दूर और सफ़र बहुत है,
छोटी सी जिंदगी की फिकर बहुत है,
मार डालती ये दुनिया कब की हमें,
लेकिन माँ की दूवाओं में असर बहुत है।
एक दुनिया हैं जो समझाने से भी नहीं समझती,
एक माँ थी बिन बोले सब समझ जाती थी।
न अपनों से खुलता है न ही गैरों से खुलता है,
ये जन्नत का दरवाज़ा है माँ के पैरो से खुलता है।
जो शिक्षा का ज्ञान दे उसे शिक्षक कहते है,
और जो खुशियों का वरदान दे उसे मां कहते है।
है एक कर्ज़ जो हर दम सवार रहता है,
वो माँ का प्यार है . सब पर उधार रहता है।
माँ तो जन्नत का फूल है प्यार करना उसका उसूल है,
दुनिया की मोहब्बत फिजूल है माँ की हर दुआ कबूल है,
माँ को नाराज करना इंसान तेरी भूल है,
माँ के कदमो की मिट्टी जन्नत की धूल है।
बिन कहे आँखों में सब पढ़ लेती है,
बिन कहे जो गलती माफ़ कर दे वो माँ है।
गिन लेती है दिन बगैर मेरे गुजारे हैं कितने,
भला कैसे कह दूं कि माँ अनपढ़ है मेरी।
किसी को जन्नत तो किसी को दो जहान चाहिए,
किसी को धन दौलत तो किसी को मकान चाहिए,
मुझे नहीं गरज़ इन नेअमतों की या रब,
जिसकी खिदमत से मिले सब वो माँ चाहिए।
ज़िंदगी में उसका दुलार काफ़ी है,
सर पर उसका हाथ काफी है,
दूर हो या पास क्या फर्क पड़ता है,
माँ का तो बस एहसास ही काफ़ी है।
बिना बताए ही वो हर बात जान जाती है,
वो माँ ही तो अपनी दोस्त बन जाती है,
अगर कोई मुसीबत आए तो ढाल बन जाती है,
वो माँ ही है जो दुआ बन जाती है।
उनके लिए हर मासूम हर बहार होता है,
जिनके हिस्से में माँ का प्यार होता है।