बिना हुनर के भी वो चार औलाद पाल लेती है,
कैसे कह दूं कि माँ अनपढ़ है मेरी।
ज़िंदगी में उसका दुलार काफ़ी है,
सर पर उसका हाथ काफी है,
दूर हो या पास क्या फर्क पड़ता है,
माँ का तो बस एहसास ही काफ़ी है।
पहाड़ो जैसे सदमे झेलती है उम्र भर लेकिन,
बस इक औलाद के सितम से माँ टूट जाती है।
जो शिक्षा का ज्ञान दे उसे शिक्षक कहते है,
और जो खुशियों का वरदान दे उसे मां कहते है।
माँ मैं तुझको खोना नहीं चाहती,
तुझे देख रोना नहीं चाहती,
तुझ से जुड़ गया है दिल मेरा,
तुझे छोड़ कुछ पाना नही चाहती।
ऐ खुदा तूने गुल को गुलशन में जगा दी,
पानी को समुद्र में जगा दी,
तू उसे जन्नत में जगा देना,
जिसने मुझे नौ महीने अपने पेट मे जगा दी।
गिन लेती है दिन बगैर मेरे गुजारे हैं कितने,
भला कैसे कह दूं कि माँ अनपढ़ है मेरी।
जब भी गन्दा होता हूँ मैं वो साफ़ कर देती है,
अपनी हर संतान के साथ इन्साफ कर देती है,
नाराज होना तो फितरत होती है औलादों की,
माँ से जब भी माफ़ी मांगो हर खता माफ़ कर देती है।
माँ की दुआएँ ज़िन्दगी बना देंगी,
खुद रोएगी पर तुम्हें हंसा देगी,
कभी ना रुलाना अपनी माँ को,
ये गलती पूरा अर्श हिला देगी।
मंज़िल दूर और सफ़र बहुत है,
छोटी सी जिंदगी की फिकर बहुत है,
मार डालती ये दुनिया कब की हमें,
लेकिन माँ की दूवाओं में असर बहुत है।